
न जाने भाग्य में क्या
बदा था कि, एक दिन, राजकुमारी बीमार पड़ गई. राजवैद्य ने हर प्रयास कर देख लिया,
राज्यभर से हर तरह के दूसरे वैद्य भी बुलाए गए पर राजकुमारी की बीमारी का हल न निकला.
राजकुमारी की हंसी न जाने कहां खो गई थी. वह उदास रहने लगी. उसकी खिलखिलाहटें
जाती रहीं. वह अब खेलती भी न थी. उसे खाने-पीने में भी रूचि न रही, उसकी भूख तो
जैसे सदा के लिए ही मर गई थी. महल में खिन्नता छाई रहने लगी, राज्य में अब उत्सव
भी न होते थे. चारों ओर बस उदासी ही उदासी दिखई देती थी. राज्य की प्रजा दुखी थी.
एक दिन राजकुमारी महल
में, कमरे की खिड़की के पास बैठ उदास नजरों से यूं ही बाहर देख रही थी कि अचानक,
हवा का एक ठंडा सा झोंका आया और तभी उसने देखा कि बाहर बगीचे में उसके ही जैसी एक
छोटी सी बच्ची हाथ में फूल लिए हंसते-खिलखिलाते तितलियों के पीछे भाग-दौड़
रही है. राजकुमारी ने आंखें बंद कर लीं और उसने एक गहरी सांस ली. उसके चेहरे पर एक
हल्की सी मुस्कान तैर गई. अगले ही पल उसने आंखें खोलीं तो उसके चेहरे पर पहले सी
ही खुशी लौट आई थी.
यह ख़बर महल और प्रजा
में आग की तरह फैल गई. राज्यभर की खुशियां लौट आई थीं.
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