बुधवार, 18 सितंबर 2013

(लघुकथा) ज्योति‍ष


उसे ज्‍योति‍ष पर कोई वि‍श्‍वास न था. वह समाचार पत्र में साप्‍ताहि‍क भवि‍ष्‍यफल कभी-कभी पढ़ तो लेता था पर ठीक वैसे ही जैसे लोग चुककुले भी पढ़ लेते हैं. उसके एक मि‍त्र ने कहीं से ज्योति‍ष और हस्तरेखा का कोई कोर्स कर रखा था. वह अपने उन मि‍त्र को प्राय: कुछ-कुछ कटाक्क्षपूर्ण बातें भी कहता. वे मि‍त्र उसे समझाने के कोई वि‍शेष प्रयास न करते लेकि‍न कहते कि‍ यह एक वि‍ज्ञान है. एक दि‍न उसने कहा कि‍ चलो अगर ऐसी बात है तो मुझे भी समझाओ तो अपना ये वि‍ज्ञान.

उसके मि‍त्र ने ज्‍योति‍ष के बारे में उसे धीरे-धीरे पढ़ाना-बताना शुरू कि‍या. वह वि‍षय के बारे में कुछ-कुछ गंभीर होने लगा. कुछ करने-कराने से पहले शुभ-अशुभ घड़ी और दि‍न-वार-मुहूर्त देखने लगा. वास्‍तु और फेंग शुई की कि‍ताबें पढ़ कर घर में उथल-पुथल भी शुरू कर दी. उसे पता चला कि‍ रंगों का भी एक और वि‍ज्ञान है, तो उस पर भी चलना शुरू कर दि‍या.


तभी, एक दि‍न उसने अपनी पत्‍नी को कि‍सी से फ़ोन पर बात करते सुना –‘अरी शुकर मना कि‍ तेरे पति‍ के दोस्‍त तो बस जुआरी और शराबी-कबाबी ही हैं, मेरे इनका दोस्‍त तो कोई एक पागल है उसने पता नहीं इन पर कोई जादू-टोना कर दि‍या है या ये भी उसी की तरह गए काम से. कि‍सी साइकि‍यैट्रि‍स्‍ट के बारे में जानती हो तो बताओ...’
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6 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा हा हा ज्योतिष शास्त्र से साइकोलॉजी तक :)

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  2. जन्‍मकुडली का नमूना बनाने के बाद भी 12 खाने को यूं खाली छोडकर अच्‍छा किया आपने ..
    इसे बनाने में कहीं न कहीं भूल होती और आपपर ज्‍योतिषियों को हंसने का मौका मिल जाता ...
    एक बात कहना आवश्‍यक है कि जन्‍मकुंडली से भविष्‍यवाणी करने की बातों में ज्‍योतिषियों के मध्‍य एकता न होने से इसपर हंसा जा सकता है ...
    पर जन्‍मकुंडली को बनाने की विधा ऐसी है कि छोटी सी इस कुंडली के ग्रहों को देखकर किसी के जन्‍म वर्ष , माह , पक्ष , हिंदी तिथि और समय के बारे में सबकुछ बताया जा सकता है ...
    मेरा सवाल है कि कम से कम इतनी छोटी जगह में इतने बडे आसमान के सारे ग्रहों , नक्षत्रो , राशियों को समेट लेने की विधा की पढाई किसी भी कक्षा में आवश्‍यक क्‍यों नहीं समझी गयी ??
    मेरा ही जबाब यह है कि इसलिए कि बच्‍चों को ज्‍योतिष में रूचि आ जाएगी और कुछ कुशाग्र बच्‍चे इसके प्रभाव को महसूस करते हुए ज्‍योतिष के अध्‍ययन को आगे बढाएंगे और इस तरह भारत का प्राचीन ज्ञान पदस्‍थापित होगा , जिसे समाप्‍त करना किसी का लक्ष्‍य था !!!
    इसका फायदा यह हुआ कि आप जैसे पढे लिखे लोग अभी भी समझते हैं कि हर दिन चंद्रमा शाम को पूर्व दिशा में उदित होता है और सुबह पश्चिम दिशा में अस्‍त होता है !!!!

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  3. इनसे जो दोस्ती पालेगा वो आखिरकार पागलों के डाक्टर के पास तो पहुंचेगा ही.:)

    रामराम.

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