इन
दरीचों से,
ठंडे
झोंके सा चला आता है नख़लिस्तान ,
अफ़वाह
तो महज मजहब के दुश्मन ने उड़ाई होगी.
चल
आ बैठ,
फूंक
दें रूस्वाइयां ज़माने भर की आज,
दामन
में कांटों की बात (?) दुश्मन ने उड़ाई होगी.
आसां
है बहुत
रोशनी
को बुर्कों में दफ़न कर देना यार,
कंदील
से घर जला देने की दुश्मन ने उड़ाई होगी.
चलो
तो चलो
तूफ़ानों
की तरह कि वो रूकते नहीं हमदम,
तूफ़ानों
के ठहर जाने की दुश्मन ने उड़ाई होगी.
भरोसा
तो रख,
गुजर
जाएगा ये वक्त भी रात की तरह,
आफ़ताब
ठहर जाने की भी दुश्मन ने उड़ाई होगी.
00000
वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह
जवाब देंहटाएंएक कार्टूनिस्ट की लेखनी चलती है
जवाब देंहटाएंतो क्या खूब दौड़ लगाती है
आभार :-)
हटाएंअत्यंत प्रभावी कार्टूनों की तरह ही
जवाब देंहटाएंखाली दिमाग
जवाब देंहटाएंशैतान का होता है घर
लिख डालो पेज भर भर ...........:)
क्या बात !
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब, एक और सशक्त विधा की बानगी. हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया ....आपके लेखन का ये रंग , कृपया नियमित लिखे ऐसा कुछ भी
जवाब देंहटाएंआभार मोनिका जी, पर ये मेरा क्षेत्र नहीं है :-)
हटाएंमंगलवार 15/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
बहुत सुन्दर ...लाजबाब ....
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