जो मुझसे बड़े हैं
बैसाखी पे खड़े हैं.
देखो न आदमकद
दुगने तो गड़े हैं.
मेरी सुनेंगे क्या
वो तो खुद अड़े हैं.
हारने का ख़ौफ़ दो
उन्हें, जो न लड़े हैं.
पलटता नहीं हूं मैं
मेरे फ़ैसले कड़े हैं.
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वह गॉंव से शहर आ गया था
और कुछ ले-दे के रेलवे लाइन के किनारे बंग्लादेशियों के साथ-साथ उसने भी एक
झुग्गी डाल ली थी. गॉंव में उसके पास यूं भी कुछ नहीं था दूसरों के यहां किसानी-मज़दूरी
करता था, यहां चौकीदारी करने लगा. एक दिन वह दूसरे गार्ड से बात कर रहा था कि शहरों
में लोग जात-बिरादरी के हिसाब से नहीं रहते.