सोमवार, 27 अक्टूबर 2014
शनिवार, 18 अक्टूबर 2014
(लघुकथा) स्कूल
वार्षिक
एक लाख रूपये तक की आमदनी वाले लोगों के बच्चों को बड़े-बड़े स्कूलों में दाखिला
देने की ख़बर पढ़ कर वह बहुत ख़ुश हुआ. ख़बर में ये भी लिखा था कि फीस नाम मात्र
की होगी और किताबें-वर्दी मुफ़्त मिलेंगे. वह एक ऐसे ही बड़े स्कूल के पास रहता
था. उसने हिसाब लगाया तो पता चला कि सवा आठ हज़ार के वेतन के हिसाब से तो वह भी
आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आ जाता है. उसने काग़ज़-पत्तर पूरे
कर, अपना बच्चा उस स्कूल में दाखिल करवा दिया. पड़ोस में मिठाई बांटी. अब वह
बहुत खुश था. अपने बच्चे को, एक दिन, बहुत बड़ा अफ़सर बनते साफ देख रहा था वह.
भगवान
जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है. इधर बच्चे का दाखिला हुआ, उधर कुछ ही
महीनों बाद उसके मालिक ने उसका वेतन सौ रूपये बढ़ा दिया. उसने बच्चे के हाथ मुट्ठी
भर टॉफ़ियां भिजवाईं कि जा अपने दोस्तों के साथ खा लेना.
बच्चा
दोपहर को स्कूल से एक चिट्ठी लेकर लौटा कि अब आपकी वार्षिक आमदनी एक लाख
रूपये से ज़्यादा हो गई है इसलिए फ़ीस माफ़ी वापस ली जा रही है. मुफ़्त के कपड़े-किताबें
भी बंद. और अगले महीने से साढ़े नौ हज़ार की फ़ीस जमा कराना शुरू कर दो.
वह चिट्ठी
बार-बार पढ़े जा रहा था पर समझ नहीं पा रहा था.
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