सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

कवि‍ता :- बचपन



अजब फ़ि‍तरत है मेरी
कि‍
ठोकर खा कर गि‍रता भी हूं
तो
उठना सीखने से पहले
वहां भी खेल लेता हूं मैं.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. अवसरवादी उसे ही कहते हैं जो पानी में अगर गिर जाय तो नहा कर लौटे.

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  2. इमारत की नींव को खोदते हुए रोज एक सपना देखती हूँ
    हर रोज इमारत की ईंट बनकर मिट्टी से अपनी देह धोती हूँ।

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  3. यही होता है बचपन , हर जगह, हर हाल में खुश

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