गांव में उन दोनों के
परिवार, आपस में दुश्मनी के ही कारण जाने जाते थे. दोनों ही परिवार कोई बहुत
अमीर नहीं थे पर फिर भी उन दोनों परिवारों में पुश्तैनी दुश्मनी अमीरी से कम न
थी. दुश्मनी किस बात पर चली आ रही थी यह अब किसी को याद तक न था. उस दिन भी,
फिर किसी बात पर झगड़ा हुआ. झगड़े में दोनों परिवारों के सभी लोग शामिल हो गए.
और झगड़ा इतना बढ़ा कि एक परिवार ने दूसरे परिवार के एक व्यक्ति की हत्या कर
दी. पंचायत हुई, फिर पुलिस आई और कोर्ट-कचेहरी शुरू हो गई.
ऋतुएं बदलने लगीं, बच्चे
बड़े होते रहे, बड़ों की शादियां होतीं तो मुकदमों की तारीखों के हिसाब से दिन-वार
तय होते. सूखा पड़ता या फ़सल अच्छी होती, कोर्ट-कचेहरी की हाजरियां बिना नागा
चलती रहतीं. यूं ही पता नहीं कितने साल बीत गए. इनके केस, वकीलों की नई पीढ़ी ने संभाल
लिए.

‘क्या बताउं,
बहुएं खाना देने में आना-कानी करती हैं. बेटे दवा-दारू के नाम पर ही चिल्लाने
लगते हैं. अपने-आप अंदर-बाहर आना-जाना भी अब ठीक से नहीं हो पाता. ऐसे में जेल ही भली
लगी. खाना और दवा तो टैम-टैम से मिल जाएंगे ना.’ उसके बाद पुलिस
कांस्टेबल और वह चुपचाप चलते रहे.
लॉक-अप में लाठी के
सहारे धीरे से बैठते हुए उसने बस इतना ही कहा –‘पता नहीं, मेरे
पीछे, अब हमारे कुत्ते को भी कोई खाना पूछेगा या नहीं. राम जाने.’
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