शनिवार, 23 जून 2012
(लघुकथा) पते का सबूत
वह देर रात बस से उतर, थका-हारा पैदल घर लौट रहा था. मोटर साइकिल पर पेट्रोलिंग कर रहे दो पुलिसवालों ने उसे रोक कर पूछताछ की कि वह कहॉं रहता है, कहॉं से आ रहा है और आई-कार्ड भी मॉंगा. उसने बताया कि वह फलॉं ब्लाक में रहता है, काम से लौट रहा है. आई-कार्ड पर उसके घर का पता नहीं था और ड्राइविंग लाइसेंस पर पुराना पता था. पुलिसवालों को फ़ोटो भी उसकी शक्ल से मिलती नहीं लगी. अलबत्ता उन्होंने आई-कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस रख लिए और कहा कि पते का सबूत लेकर सुबह थाने आना.
गरीबी-रेखा से ऊपर होने के कारण राशन कार्ड वह बनवा नहीं सकता था. मकान और फ़ोन उसके अपने नाम नहीं थे. मोबाइल प्रिपेड था. बिजली पानी का बिल सोसायटी के नाम आता था. ऑनलाइन बैंकिंग के चलते पासबुक का ज़माना अब रहा नहीं. उसके वोटर आई कार्ड पर किसी और की फ़ोटो छपी हुई थी. यू. आई. डी. कार्ड अभी बना नहीं था. चलते-चलते बहुत माथा पच्ची करने के बाद उसने फ़ैसला किया कि वह सुबह उस झुग्गियों वाले बंगलादेशी से सलाह लेगा जो उनके यहां कारें साफ करने आता है.
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