गुरुवार, 22 नवंबर 2012

(लघुकथा) गि‍फ़्ट



लाला जी शहर के बहुत बड़े आदमी थे. बहुत बड़ा और तरह-तरह का कारोबार था उनका, जिसे उन्‍होंने बड़ी मेहनत से खड़ा किया था. तमाम बड़े-बड़े लोगों में उठ-बैठ थी उनकी मगर क्‍या मज़ाल कि किसी ने उन्‍हें कभी ऊंची आवाज़ में बात करते सुना हो. सभी बहुत आदर करते थे उनका. सभी हल्क़ों में बड़ा रसूक रखते थे.

ईश्‍वर की मर्ज़ी, एक दिन लाला जी बीमार पड़ गए. हर तरह का इलाज किया गया पर उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ. उनका एक बेटा था. बेटा भी पिता पर ही गया था, उतना ही सज्‍जन. लाला जी को लगा कि उनका अंतिम समय आ गया है. उन्‍होंने बेटे को बुलाया. ‘‘देखो बेटा, जीवन में मेहनत ज़रूरी है पर याद रखना हर दिवाली इन लोगों को मिठाई ज़रूर मिले.’’ - कहते हुए उन्‍होंने बेटे को एक लिस्‍ट दी जिसमें लिखा था संसद सदस्‍य, विधायक, कलेक्‍टर, एस.पी., (सभी ड्राइवर और चपरासी सहित), दारोगा, इन्‍कम टैक्‍स, एक्‍साइज़, सेल्‍स टैक्‍स के इलाक़ा-अफ़सर, बिजली-पानी-फ़ोन के लाइनमैन, चौकीदार, लिफ्टमैन, ड्राइवर, खानसामा, नाई, धोबी, मोची, झाड़ूवाला, फ़राश.....

उसके बाद लाला जी ने ऑंखें बंद कर लीं.
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