सोमवार, 27 मई 2013

(लघुकथा ) पूजा





बाज़ार के बीचो-बीच उसकी छोले-भटूरे की छोटी-सी दुकान थी. दुकान खूब चलती थी, लोग उसकी दुकान ठीक से खुलने से भी पहले ही आकर इंतज़ार करते. उसने यह दुकान बहुत पहले तब खोली थी जब उसकी शादी भी नहीं हुई थी. उसने अपनी दुकान में अपने आराध्‍य देव की स्‍थापना भी की थी. इसी दुकान से उसने घर-बार, ज़मीन-जायदाद भी बनाए, बच्‍चों को पढ़ा-लि‍खा कर अच्‍छे घरों में उनकी शादि‍यां भी कीं. भगवान में उसकी अटूट श्रद्धा थी. दुकान में घुसते ही सबसे पहले वह उस मूर्ति की पूजा करता फि‍र कोई दूसरा काम शुरू करता. भगवान की वह मूर्ति एक ऊंची  सेल्‍फ़ में थी. वह एक कुर्सी पर चढ़ कर मूर्ति की आरती करता,  धूप जलाता, आंख बंद कर प्रार्थना करता, भोग लगाता, इस बीच उसके नौकर चाकर बाकी काम नि‍पटाते रहते. कढ़ाही का पहला भटूरा अपने आराध्‍य को चढ़ाता, तक कहीं दुकान बाक़ायदा शुरू होती और वह गल्‍ले पर बैठता.

     आज वह कुछ लेट हो गया था. घर से दुकान तक, बड़ी तेज़ी से स्‍कूटर चला कर पहुंचा था. एक चौराहे पर सि‍ग्‍नल भी फलांग गया. आते ही उसने भट्टी पर खड़े लड़के को डांटा-‘देखता नहीं, तेल कि‍तना गर्म हो गया है ? गैस कम कर.’ हाथ का थैला दूसरे को थमाया. और जैसे ही कुर्सी खींच कर ऊपर मूर्ति की ओर बढ़ना चाहा तो देखा कि उस कुर्सी पर तो कोई ग्राहक बैठा अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है. उसने कुछ रूखाई से कहा –‘भाई साहब आप जरा उधर खड़े हो जाइए.’ वह आदमी उठ खड़ा हुआ, उसने कुर्सी खींची और उस पर चढ़ कर पूजा करने लगा. आंख बंद कर जैसे ही उसने प्रार्थना शुरू की तो उसे लगा कि मूर्ति आज कुछ मुस्‍कुरा रही है. उसने फि‍र ध्‍यान लगाना चाहा तो उसे कि लगा कि जैसे मूर्ति बुदबुदा रही हो -‘अरे ! अभी तो तूने मुझे कुर्सी से उठा कर बाहर भेज दि‍या. अब यहां कर रहा है...’ उसने यकायक आंखें खोल कर देखा, मूर्ति न तो मुस्‍करा रही थी न ही कुछ बोल रही थी.

     उसने पीछे घूम कर देखा, वह आदमी वहां नहीं था. वह धीरे से उतर कर दुकान के बाहर गया. वह आदमी उसे कहीं नहीं दि‍खा.

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गुरुवार, 23 मई 2013

सदी के श्रीसंत तूने कर दि‍या कमाल...




श्रीसंत तेरा ये आत्‍मबलि‍दान कभी व्‍यर्थ न जाएगा. तू पकड़ा क्‍या गया, देश भर की जंग लगी पुलि‍स की नसों में तूने ख़ून भर दि‍या कि -‘हयं ! हमारे इलाके से कोई सट्टेबाज़ नहीं पकड़ा गया अभी तक ?’ और देखते ही देखते थानों में आपाधापी होने लगी है. ऐसे लगता है कि थाने-थाने ही नहीं बल्‍कि सि‍पाही-सि‍पाही के हि‍साब से सट्टेबाजों को ढूंढ-ढूंढ कर छापे मारने के टेंडर उठा दि‍ए गए हैं.

अब, हर थाने की पुलि‍स गली-गली कूचे-कूचे जा-जा कर सट्टेबाज़ों की धर-पकड़ कर रही है. जि‍तने भारी पैमाने पर ये मारा-मारी हो रही है उसके लि‍ए चैनलों का टाइम बहुत कम पड़ रहा है, इसलि‍ए सटासट न्‍यूज़ दौड़ाने वाले बुलेटि‍नों में शहर-शहर और क़स्‍बे-क़स्बे से आई पकड़म-पकड़ाई की सांस-फूली ख़बरें यूं ही थोक के भाव ख़रच कर देनी पड़ रही हैं. लेकि‍न एक बात है, देश को आज पहली बार पता चला कि सट्टेबाज़ी तो पूरे देश में कुटीर उद्योग की तरह फैली हुई है और आई.पी.एल. जैसे उसकी ब्रह्मनाभि है. यह, क्रि‍केट की वो (म)नरेगा है जि‍सने हर कि‍सी को नोट छापने का बेबाक मौक़ा दि‍या है.

और फि‍र, इसी बीच, बिंदू क्‍या आ धमका कि जैसे आग में घी का काम चल नि‍कला. पता नहीं बिंदू के दांतों पर कि‍स नमक वाले टूथपेस्‍ट का कमाल है कि रि‍फ़्लेक्‍शन ने पुलि‍स वालों की आंखों में कहीं अधि‍क चौगुनी चमक और मीडि‍या की कहानि‍यों में नमक का स्‍वाद अलग से भर दि‍या है. सभी चटकारे ले-ले कर, अब तो पूरी फ़ि‍ल्‍म इंडस्‍ट्री पर ही गाज गि‍राने से पहले उस गाज को जम कर तेल पि‍ला रहे हैं. पुलि‍सि‍यों और रि‍पोर्टरों को ख़ूब आनंद आ रहा है, बाकी लोग भी कम नहीं हैं, वो भी जम के मज़ा सूत रहे हैं.
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