पिता
–‘अजी सुनती हो, हमारे बेटे को खेल-कूद और यारों-दोस्तों से कभी फ़ुर्सत नहीं रही,
वो हमेशा से ही उछल कूद करने वाला हंसमुख बच्चा रहा है. यहां तक कि कभी कभी तो
वो मुझ से भी मज़ाक कर लिया करता था. कॉलेज पास करने के बाद भी उसमें कोई खा़स
बदलाव नहीं आया. ठीक है, उसे कुछ समय तक कोई बहुत बड़ी नौकरी नहीं मिली पर फिर
भी, अब उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम तो मिल ही गया है न. तुम कह रही थी कि उसकी
तन्ख्वाह भी बुरी नहीं है. पर कुछ समय से देख रहा हूं कि वह बुझा-बुझा सा रहता
है, यार दोस्तों के साथ उठना बैठना भी कम कर दिया है उसने, कई बार तो उसे फ़ोन
पर दोस्तों से लगभग लड़ते भी सुना है मैंने, कुछ चिड़चिड़ा सा भी हो गया है वो.
क्या तुम्हें नहीं लगता कि वह तुनुक-मिजाज़ हो गया है और कई बार तो एक दम से गुस्सा
करने लगता है ! ज़रा पूछना तो उसे, क्या बात है !’
मॉं
–‘अजी पूछना क्या है, टेलीमार्केटिंग कंपनी में है, फ़ोन पर सारा-सारा दिन लोगों
की झिड़कियां सुनेगा तो और क्या होगा जी!’
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