रविवार, 23 अगस्त 2015

(लघुकथा) लेखक



उसे लि‍खने का बहुत शौक था. नौकरी तो थी पर उसमें, लेखक होने के बावजूद कोई इज्‍ज़त नहीं थी. कोई उसकी इस बात को भाव नहीं देता था कि‍ वह लेखक था. वह बचपन से ही कवि‍ताएं लि‍खता आ रहा था. उसे कवि‍ के बजाय लेखक कहलाना पसंद था. उसने अपनी कवि‍ताओं की डायरि‍यां बड़ी संभाल के रखी हुई थीं. अख़बारों में सूचनाएं पढ़ कर धीरे-धीरे उसने गोष्‍ठि‍यों में जाना शुरू कर दि‍या. वहां, वो तो सबको सुनता पर उसे कवि‍ता कोई न सुनाने देता. तभी उसे अपने जैसे दूसरे लोगों की एक बैठक के बारे में पता चला तो उसने वहां जाना शुरू कर दि‍या. वहां सभी एक दूसरे को कवि‍ताएं सुनाते थे. हर बार उसे बुलावा भी आने लगा. अब उसकी एक ही चाह थी कि‍ बस, एक बार कोई उसकी कि‍ताब छाप दे. पता करना शुरू कि‍या तो कुछ ले-दे कर कि‍ताबें छापने वाले भी मि‍ल गए.

उसने कुछ पैसे इकट्ठे करके कि‍ताब छपा ली. कि‍ताब बेचने के लि‍ए रि‍बन कटा, कुछ लोगों ने कुछ कॉपि‍यां ख़रीद भी लीं. प्रकाशक ने कुछ कॉपि‍यां रख कर बाकी उसे ही लौटा दीं कि‍ भई बेच लेना. अब वह हर गोष्‍ठी में अपनी कि‍ताब भी ले जाता और उसकी कॉपि‍यां वहीं नीचे बि‍छा देता. कभी-कभी कोई नया आदमी, एक-आध बार उलट-पलट कर देख भी लेता. एक दि‍न, गोष्‍ठी कराने वाले कवि‍ ने उसे कहा कि‍ भई इन्‍हें बाहर रखा करें तो बेहतर. अब वह बाहर ही कि‍ताबें बि‍छा कर बैठने लगा. फि‍र एक दि‍न, उसे गोष्‍ठी के लि‍ए बुलावा आना बंद हो गया.

कि‍सी से बातचीच कर, बैठक वाले दि‍न वहां पहुंचा तो उसने देखा कि‍ गोष्‍ठी कराने वाले कवि‍ ने बाहर, उसके बैठने वाली जगह पर तीन लेखक अपनी-अपनी कि‍ताबों के साथ बि‍ठा रखे थे.     
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शनिवार, 22 अगस्त 2015

(लघुकथा) बेटा



उसकी उमर बहुत हो गई थी. पर फि‍र भी घर के नज़दीक ही एक डॉक्‍टर के छोटे से प्राइवेट क्‍लीनि‍क में सफाई-पोचे का काम करती थी. घर पर कुछ ख़ास काम नहीं होता था सो, सुबह-सवेरे पहुंच जाती, धीरे-धीरे आराम से काम नि‍पटाती, पूरा दि‍न वहीं रहती और फि‍र शाम को ही घर जाती. एक दि‍न सुबह-सुबह क्‍लीनि‍क खुलने से पहले ही एक परि‍वार बदहवास सा क्‍लीनि‍क पहुंचा. मां-बाप की गोद में कुछ महीने का बेटा था. साथ में उनकी बड़ी बेटी भी थी.
 
उन्‍होंने बताया कि‍ डॉक्‍टर साहब से बात हो गई है. वे आते ही होंगे. उनके बेटे को तेज़ बुखार था, वह आंखें नहीं खोल रहा था. उसने काम छोड़ कर उन्‍हें बि‍ठाया और भीतर से गीली पट्टी लाते हुए तसल्‍ली दी कि‍ कोई बात नहीं, चिंता न करो, माथे पर गीली पट्टी रखने से बुखार उतर जाएगा. उन्‍हें इस बात की भी चिंता थी कि‍ बेटी जो बारहवीं में थी, आज उसका स्‍कूल मि‍स नहीं होना चाहि‍ए. तभी डॉक्‍टर साहब भी आ गए. बच्‍चे को चैक कि‍या और कहा कि‍ डरने की कोई बात नहीं है, आइंदा बच्‍चे का बुखार इतना न बढ़ने दें. जैसे ही बुखार बढ़ना शुरू हो, गीली पट्टी से माथा, कांख और पेट पोछें. और कुछ दवाइयां भी लि‍ख कर दीं.

परि‍वार चला गया तो वह वहीं डॉक्‍टर के केबि‍न में साफ-सफाई करते हुए खुद से बोली –‘बेटी और बेटे की उमर में इतना फरक ! रामजाने कि‍तनी बेटि‍यां मारी होंगी. डॉक्‍टर ने यूं कंप्‍यूटर ऑन करने का उपक्रम कि‍या कि‍ जैसे उसने कुछ सुना ही न हो.
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शनिवार, 1 अगस्त 2015

(लघुकथा) थप्‍पड़



वह बहुत बड़ा लीडर था. और यह, उस लीडर के मातहत एक छोटा सा मुलाजि‍म. लीडर एक दि‍न इस मुलाजि‍म के यहां दौरे पर आया. साथ चल रहे लोगों पर रौब गांठने की गर्ज़ से, कुछ बहाना बना कर उसने मातहत को एक थप्‍पड़ जड़ दि‍या. मातहत ने केस दर्ज़ करा दि‍या. मामला चलता रहा. साल-महीने बीतते रहे.

एक दि‍न, जब अदालत में केस के फ़ैसले की घड़ी आई तो लीडर ने मातहत को कई लाख रूपए का हर्ज़ाना देने की पेशकश की. मातहत ने पेशकश ठुकरा दी. लीडर को समझ आ गया कि‍ अब उसका जेल जाना तय था. उसने जज  की तरफ बेबसी से देखा. जज  ने बताया कि‍ कानून के हाथ बंधे हुए हैं, वह दोषी साबि‍त हुआ है, अब बस एक ही चारा है, यदि‍ मातहत समझौते के तहत उसे माफ़ कर दे तो वह जेल जाने से बच सकता है. लीडर ने मातहत की ओर देखा, पर वह जज  की ओर देख रहा था. जज ने मातहत से पूछा तो मातहत ने कहा कि‍ यदि‍ उसे भी, लीडर को एक थप्‍पड़ मारने दि‍या जाए तो वह उसे माफ़ कर सकता है. जज ने लीडर की ओर देखा. वह जेल नहीं जाना चाहता था. उसने अपने वकील की ओर देखा. वकील ने कुछ नहीं कहा. लीडर ने जज की तरफ देख कर हामी में सि‍र हि‍ला दि‍या और फि‍र वह नीचे की ओर देखने लगा. जज ने मातहत की ओर इशारा कर थप्‍पड़ मारने की इजाज़त दे दी. 

वह धीरे-धीरे लीडर की ओर बढ़ा और उसके पास जाकर रुक गया. लीडर ने ज़ोर से आंखें भींच लीं. मातहत ने थप्‍पड़ मारने के बजाय कहा –‘तुम्‍हारे लि‍ए बस इतना ही काफी है. मैं तुम जि‍तना नहीं गि‍र सकता. मैंने तुम्‍हें माफ़ कि‍या.’     

फि‍र वह घूमा, जज साहब को झुक कर नमस्‍ते की और कोर्ट से बाहर नि‍कल गया.
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