जहांगीर
ने किले के दरवाज़े पर एक घंटा टंगवा दिया था. जिस किसी को फ़रियाद करनी हो
तो वह घंटा बजा सकता था. एक दिन, एक ग़रीब आदमी घंटा बजाने पहुंचा तो उसे वकील ने
रोक लिया –‘तुम्हें न अरबी आती है न फ़ारसी, सुल्तान से अपनी बात कहोगे कैसे.’
ग़रीब उसके पीछे हो लिया -‘ठीक है माई-बाप, तो आप ही मेरा मामला ठीक करवा दो.’
वो
दिन है और आज का दिन, वकील तारीख़ पे तारीख़ दे रहा है, प्रोसीज़र पूरा ही नहीं
हो पा रहा है कि वो घंटा बजा सके. ग़रीब आदमी का सब कुछ अब वकील के पास है सिवाय
उसकी लंगोटी के. वकील की नज़र अब उसकी लंगोटी पर भी है. लेकिन ग़रीब को भरोसा पूरा
है कि एक न एक दिन वो घंटा जरूर बजा पाएगा.
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