उसकी
उम्र तीन-चार साल थी. बाजार के कोने में एक दुकान बन रही थी जहां उसके मां-वाप
ईंटें ढोने का काम कर रहे थे. वह वहीं अपने मां-बाप के आस-पास खेलता रहता. पास की
दुकानों पर लोग आते-जाते, वह उन्हें देखता रहता. आने-जाने वालों के साथ बच्चे भी
होते वह उन बच्चों को भी देखता. और देखता कि दुकानों से लौटते समय उनके हाथों
में अक्सर चमचमाते पैकेट होते. बच्चे उनमें से कुछ-कुछ निकाल कर खाते हुए
गुजरते.
एक
दिन पास की एक दुकान के आगे खेलते हुए उसने देखा कि चिप्स का एक पैकेट दुकान
के बाहर बाकी पैकेटों से अलग, नीचे पड़ा हुआ है. वह उस पैकेट को उठा लाया. उसे पैकेट
खोलना नहीं आया तो मां के पास ले गया. उसकी मां ने पूछा कि किसने दिया. उसने
इशारे से बताया कि वहां पड़ा हुआ था. उसकी मां ने कहा कि नहीं बेटा ऐसे किसी दूसरे
की चीज़ नहीं उठाते, जा इसे वहीं रख आ. बच्चा बात मान कर वह पैकेट वहीं रख आया.
ग़रीबी
की यह उसको पहली ईमानदार सीख थी जो आगे चलकर, उसके बड़ा आदमी बनने में आड़े भी आ सकती थी.
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