उसे
जाने-माने साहित्यकारों की फ़ेहरिस्त में शामिल होने की कोशिश करते करते ज़माना
बीत गया. जाने-माने तो क्या, उसके ख़ुद के अलावा कोई दूसरा उसे साहित्यकार तक
कहने को तैयार न होता था. पर किस्मत का खेल देखो, एक दिन उसे किसी की पुस्तक के विमोचन
का न्योता आ गया. समारोह में जाने के लिए वह ख़ुशी-ख़ुशी बालों में खिजाब लगाने
की तैयारी करने लगा.
पत्नी
की आवाज आई –‘क्यों बाल काले कर भद पिटवाना चाहते हो, देखा नहीं कि किताबें
रिलीज़ करने वालों के बाल सफ़ेद होना कितना ज़रूरी होता है.’
उसे
ठीक वैसा ही लगा जैसा पहली बार किसी जवान बच्चे के उसे पहली बार अंकल कह कर
पुकारने पर लगा था. तब उसे ध्यान आया कि –‘अरे ! अपनी तो पूरी उम्र
ही बीत गई.’
00000
awsar to milaa :) mujhe bhee sochnaa padegaa aage se dye karne ke baare mein :)
जवाब देंहटाएंदिल पर जा कर लगी बात सर जी.
जवाब देंहटाएंगज़ब सभी के दिलों की बात कह गए आप... :)
जवाब देंहटाएं