वह एक मध्यवर्गीय परिवार से था. कुछ बड़ा
हुआ तो उसे घर वालों ने एक स्कूल में भर्ती करवा दिया. घर पर उसे भोलू कहते थे सो
स्कूल में उसका नाम भोलू चंद लिखवाया गया. तब अंग्रेज़ी स्कूलों का न तो रिवाज़
था न ही मध्यवर्गीयों की हैसियत थी भोलुओं को अंग्रेज़ी स्कूलों में भेजने की.
उसने पढ़ाई-लिखाई हिन्दी से पूरी की. नौकरी मिली तो उसने पाया कि वहां दो दुनिया थीं,
एक हिन्दी की दूसरी अंग्रेज़ी की. उसने ये भी देखा कि अंग्रेज़ी वालों की बात भी
कुछ और ही थी. उसने फिर बड़ी मेहनत की और धीरे-धीरे वह अंग्रेज़ी वालों की जमात में
शामिल हो गया.
एक दिन उसने अपने बेटे से उसकी
बारहवीं की परीक्षा के बारे में बात की क्योंकि वह भी उसी की तरह गणित में कुछ कमज़ोर
था –‘बेटा तुमने लघुत्तम समापवर्तक के सवाल तो पक्के कर लिए हैं न?’
‘डैड, व्हाट डू यू
मीन बाई लगुत्तम बत्तक ?’ – बेटे ने पूछा.
उसे लगा कि अचानक किसी ने उसका नाम भोलू चंद
से बदल कर भौंदू चंद कर दिया है.
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हा-हा-हा-हा...... मेरी बेटी को हिन्दी की गिनतियाँ नहीं आती, अठावन के बाद सीधे उन्यासी, अस्सी पर पहुँच जाती है! लघुतम और महतम समापवर्तक तो दूर की कौड़ी है उसके लिए ! :)
जवाब देंहटाएंएक बार मैने कहा तिरेसठ और बेटे ने पूछा 'माने कितने?'. मगर जैसे ही मुझे देखा, चूप हो गया और अब हिन्दी गिनती रट रहा है.
जवाब देंहटाएंबच्चे अक्सर पूछ लेते हैं , तिरेसठ, उनहत्तर ...क्या बताएं कि उनको पढ़ाते हम भी गड़बड़ाने लगे हैं !
जवाब देंहटाएंयह लघुत्तम तो महत्तम हो गया है. सुन्दर.
जवाब देंहटाएं:-)
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