वो एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के काम पर लगी थी. सिर पर तसला-ईंट ढोती थी वो अधेड़ सारा दिन. लोग उसे ए कहकर बुलाते थे हालांकि उसका नाम कमला था. शादीशुदा थी, मर्द भी वहीं-कहीं कुछ दूसरा काम देखता था. चारों तरफ धूल-मिट्टी उड़ती, वो झट पल्लू से मुंह झाड़ लेती. कभी-कभार शरीर कुछ उघड़ भी जाता, बेलदार लोग मौज ले लेते, वो भी कम ज़ुबानज़ोर न थी, अच्छे से हड़का के ‘हत्त‘ कर देती. बीच बीच में बीड़ी भी पी लेती. शाम को थक हार कर उसका मरद कहीं से कच्ची ले आता तो कुछ वो भी खींच लेती. |
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aapki laghukatha prabhavshali hai. aurat ki hod aadmi se hi nahin hain, balki khud aurat se bhi hai. isi se uski ladaai sau din chale adhai kos siddh ho rahi hai.
जवाब देंहटाएंapne aap me bahut kuch kah jati hai ye katha
जवाब देंहटाएंगरीबी बहुत बड़ा अंतर पैदा कर देती है इंसान इंसान के बीच.
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार , दिल को छूने वाली रचना
यही तो वह समझी नहीं (जबकि दोनों ही के सब काम एक से ही थे)
हटाएंबहुत सुन्दर. राजपूत जी से सहमत.
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