मंगलवार, 27 मार्च 2012

(लघु कथा) 21 दि‍सम्‍बर 2012

सुबह का अख़बार देखकर पत्‍नी जल्‍दी-जल्‍दी अंदर भागी. उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं. हालांकि‍ उसका परि‍वार कोई वी.आई.पी. परि‍वार नहीं था कि‍ उनके बारे में कोई समाचार छपता और, महंगाई या दुर्धटनाओं की ख़बरें भी उस जैसे मध्‍यवर्गीय परि‍वारों को अब नहीं डराती थीं. फि‍र भी वह बहुत चिंति‍त दि‍ख रही थी.

उसने पति‍ को जगाया -'सुनो जी, ख़बर छपी है कि‍ 21 दि‍सम्‍बर 2012 को दुनि‍या का अंत हो जाएगा. '
'उहुं, सोने दो भागवान.' - पति‍ ने करबट ली.
'वास्‍तु वाले एक बाबा ने भी इसकी पुष्‍टी कर दी है जी.'
पति‍ उठ बैठा -'क्‍या वार है उस दि‍न.'
'शुक्रवार' - पत्‍नी ने बताया. 
'उफ़्फ, ओ भगवान कम से कम शनि‍वार इतवार की छुट्टी तो ले लेने देता' - कह कर पति‍ ने फि‍र से चादर तान ली. 
00000

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें