इसे संकेत मान कर वह सर्विस प्रोवाइडर की
साइट पर गया तो उसे सबसे पहले ख़ुद को रजिस्टर कराने का निर्देश मिला, रजिस्टर
करने की कोशिश की तो उसकी हैरानी और बढ़ाते हुए कम्प्यूटर ने बताया कि उसके
मोबाइल नंबर से तो वह पहले से ही रजिस्टर्ड है. लेकिन उसे न तो यूज़र आई. डी.
पता थी न ही पासवर्ड इसलिए अब वो कुछ नहीं कर सकता था. उसे कोई नहीं बता पाया कि
वह कहां जाकर शिकायत करे. शिकायत करने के लिए बेवसाइट पर न तो किसी का नाम था
न ही कोई डेज़िगनेशन और न ही भरोसे का फ़ोन नं., दफ़्तर का पता भी किसी पोस्ट
बॉक्स नंबर पे था.
रुल्दू राम ने अपना रोना एक जानकार के आगे
रोया तो उसके जानकार ने राय दी –‘देखो भई, मैं तो इस तरह की कंपनियों और ऐसे ही
प्राइवेट बैंकों के बस एक-एक शेयर ख़रीद रख छोड़ता हूं. उसके बाद वो आए दिन अपनी
पूरी जानकारी वाली वार्षिक-रिपोर्टें भेजते रहते हैं, मैं तो इनके डायरेक्टरों
को उनके नाम से कम्प्लेंट भेजता हूं. फ़रक़ पड़ता है.’
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क्या आइडिया हैं वाह वाह :):)
जवाब देंहटाएंबढिया कहानी और उससे भी बढिया सलाह ।
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