वह सरकार में अब बहुत बड़ा अफ़सर हो गया
था. आज एक ज़माने बाद ननिहाल लौटा था. छुटपन में गर्मियों की छुट्टियां हालांकि
यहीं बीतती थीं उसकी. उसके आने से सभी बहुत प्रसन्न थे. वह अपने नाना के साथ खाट
पर बैठा था. शुरूआती राजी-नावें के बाद उसके नाना हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे. बढ़ती
उम्र के चलते वे अब बात कम करते थे और उनके चेहरे की हँसी भी मुस्कान भर बन कर रह
गई थी.
वह खुले आसमान के नीचे दूर दूर तक फैली हरियाली देख रहा था, बचपन की यादों में डूबता-उतराता हुआ.
वह खुले आसमान के नीचे दूर दूर तक फैली हरियाली देख रहा था, बचपन की यादों में डूबता-उतराता हुआ.
चिलम की आग को निहारते हुए उसके नाना ने
कहा-‘गांव के बहुत बड़े नेता को शहर पहुंच कर और शहर के बहुत बड़े अफ़सर को गांव
में आकर कितना पॉवरलेस सा लगता है न ?’
उसके होठों पर हँसी दौड़ गई. उसने सिर
घुमा कर अपने नाना को देखा. वे निर्विकार भाव से हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे.
00000
Sachaai ke karib ...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने........
जवाब देंहटाएंगांव हो या शहर, सब पॉवर से लैश होकर ही रहना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंtrue
जवाब देंहटाएंव्यंग्य और कटाक्ष यहाँ भी हैं ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य है भाई साहब बहुत बारीक .
जवाब देंहटाएं