वो शहर के एक बहुत बड़े सरकारी महकमे में
छोटी सी नौकरी करता था. सारी ज़िंदगी चुपचाप नौकरी करते-करते इसी उम्मीद में
गुज़ार दी उसने कि एक दिन रिटायर होकर पेंशन पर गाँव चला जाएगा. रिटायर होने
के बाद वो पेंशन मांगने गया तो पेंशन बाबू ने बताया कि उसकी पेंशन में अभी कोई दिक़्कत
आ रही है. उसने रोज़-रोज़ चक्कर काटने शुरू किये तो वो कई तक साल रूके ही नहीं. और
फिर एक दिन, पेंशन बाबू ने कहा –‘तुम्हें पेंशन नहीं मिल सकती, तुम तो सरकारी
रिकार्ड में मर चुके हो.’
उसने पेपरवेट उठा कर दे मारा, पेंशन बाबू
वहीं ढेर हो गए. दफ़्तर में अफ़रा-तफ़री मच गई. लोगों ने उसे वहीं बिठा लिया.
पुलिस आई. फ़ौरी तफ़्तीश हुई तो पता चला कि जिस आदमी पर पेंशन बाबू को मार देने
का इल्ज़ाम है वो तो कई साल पहले ही मर गया था. दरोगा ने कहा –‘जाओ बाबा जाओ.’
‘साब मैं पेंशन के लिए कब आऊँ?’- उसने दरोगा से
पूछा.
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रोचक !
जवाब देंहटाएंउफ़ ....कैसे हैं ये सरकारी काम ....निकम्मे...भोली जनता को लुटाने के साथ साथ तकलीफ भी देते हैं ......
जवाब देंहटाएंजैसे को तैसा।
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