वह आगे की पढ़ाई के लिए गॉंव से शहर आया
था. सुना-सुनी, बेचारे मॉं-बाप उसे बनाना तो चाहते थे डॉक्टर या इंजीनियर पर
लोगों ने ये भी बताया था कि भई इसमें ख़र्चा बहुत होगा. सो उन्होंने रूखी-सूखी
खा कर भी उसे वकील बनाने की ठानी. वह कानून की पढ़ाई कर रहा था.
किसी दूसरे के साथ मिलकर किराए पर एक
कमरा ठीक कर लिया था उसने. मकान मालिक कमरे में ही रोटी भी बना लेने देता था.
महीने के महीने गॉव से एक छोटा सा मनिऑर्डर आता तो था पर कुछ ही दिन बाद हाथ फिर
तंग होने लगता था उसका. एक दिन उसने कुछ और पैसे मंगवाने की जुगत बिठाई और कंप्यूटर
से प्रिन्ट लेने के बारे में लिखा –‘बाबा, लीगल पेपर
की बहुत सख्त ज़रूरत है, जल्दी से साढ़े सात सौ रूपये और भेज दो.’
गॉंव में लीगल पेपर का मतलब कानून के
पर्चे का ख़र्च पढ़ कर पैसे भेज दिए गए. मुवकि्कलों से पैसे गांठने का यह उसका
पहला पाठ था जो उसने अच्छे से पास कर लिया था.
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वकील के पास जो भी आता हो यह सोच कर आता है कि वकील उस का काम मुफ्त में कर दे तो अच्छा है।
जवाब देंहटाएंवकील को धर्मशाना में रहना चाहिए, लंगर में खाना चाहिए। बीबी बच्चे तो उस के जीवन में होने ही नहीं चाहिए।
जीवन में गांठ वैसे भी सबकी मजबूत ही रहनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंpahla pathh paas kar liya:)
जवाब देंहटाएंइस धंधे में अपनों को ही चपत लगाई जाती है...लीगली !
जवाब देंहटाएंसही है वकीलों वाला दिमाग उसका चल ही गया और उसने पहला पर्चा भी पास कर ही लिया । :)
जवाब देंहटाएंकाज़ल जी आपके ब्लॉग पर पहली बार आया... आप लघुकथा भी बेहतरीन लिखते हैं... शुभकामनाये...
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