कथा कहानी
मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
(कविता) दंभ
नया दिन,
नई सुबह,
सुबह का अख़बार,
पर
अख़बार में भी
ख़बर कुछ भी नहीं.
उफ़्फ
फिर भी कितना गुमान कि
ज़िंदा हूं मैं.
00000
2 टिप्पणियां:
बेनामी
11 दिसंबर 2012 को 4:26 pm बजे
बेहतर लेखन !!!
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virendra sharma
6 जनवरी 2013 को 3:07 pm बजे
एक बीता हुआ कल है ज़िन्दगी एक एहसास भर है ,मैं हूँ बस ,हो चाहे कुछ भी नहीं .
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बेहतर लेखन !!!
जवाब देंहटाएंएक बीता हुआ कल है ज़िन्दगी एक एहसास भर है ,मैं हूँ बस ,हो चाहे कुछ भी नहीं .
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