उसके गांव में एक मंदिर था. वह उस मंदिर के अंदर कभी नहीं
गया था. मंदिर में जाने की उसकी इच्छा तो बहुत होती थी पर उसके लोगों का मंदिर
में जाना मना था. उसके लोगों का माद्दा नहीं था कि अपना मंदिर बनवा लें. वह दूर
से ही मंदिर को प्रणाम करके चला आता था.
मंदिर वालों ने एक दिन, एक और भगवान की मूर्ति स्थापित
करने का फ़ैसला किया. पर जब मूर्ति मंदिर पहुंची तो पता चला कि उसमें तो दरार
है. खण्डित मूर्ति मंदिर में प्रतिस्थापित नहीं की जा सकती थी इसलिए भक्त
लोग उसे एक पीपल के नीचे छोड़ आए. जब उसे पता चला तो वह बहुत खुश हुआ कि
पीपल के नीचे भगवान विराजे हैं. वह वहां गया और भगवान की मूर्ति को प्रणाम कर
बोला –‘कोई बात नहीं प्रभु तुम यहीं बैठो, आज तक तुमने मेरा ध्यान रखा, अब मैं तुम्हारा
ध्यान रखा करूंगा.’
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वाह..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
सादर
खंडित तो मंदिर होते हैं , मूर्तियां नहीं । बहुत सुन्दर और प्रेरक कथा ।
जवाब देंहटाएंअब तक तो पीपल के नीचे एक छोटा मन्दिर बन ही गया होंगा
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंअनु
बहुत ही सुन्दर, प्रेरक, अनुकरणीय लघुकथा ..
जवाब देंहटाएंभगवान के लिए तो यही भाव चाहिए.......बढ़िया कथा
जवाब देंहटाएंbahut khoob ..
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन 'OPEN' और 'CLOSE' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,आभार!
जवाब देंहटाएंअखंडित आस्था इसे ही कहते हैं!!
जवाब देंहटाएंवाह!
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