उस गांव के बीचोबीच से होकर एक
सड़क निकलती थी. सड़क के इधर हिन्दू रहते थे, सड़क के उस पार मुस्लिम रहते थे.
दोनों तरफ, मुसलामानों के बीच कुछ-कुछ हिन्दू और, हिन्दुओं के बीच कुछ-कुछ मुसलमान
भी रहते थे. उस गांव में न मस्जिद थी न मंदिर और धर्म को लेकर, दोनों में कभी
कोई ऊंच-नीच भी सुनी नहीं गई. गांव के सभी लोग ग़रीब थे.
धीरे-धीरे उस गांव में भी
तरक़्की पहुंची. लोगों को चार पैसे का आसरा होने लगा. हिन्दुओं को लगा कि चलो एक
मंदिर बनाया जाए, मुसलामानों को भी लगा कि गांव में एक मस्जिद तो होनी ही चाहिए.
पर दोनों को लगता कि कहीं इसे भड़काने वाली बात तो न माना जाएगा ! आख़िर फ़ैसला हुआ कि हिन्दुओं वाली तरफ
का मंदिर उसी तरफ के मुसलमान बनाएंगे और, मुसलमानों की तरफ एक मस्जिद उसी तरफ
वाले हिन्दू बानएंगे. यह भी तय रहा कि बनाने वाले ही उनका रख-रखाव भी करेंगे.
तरक़्की तो उन्होंने यूं भुगत
ली. पर अब मंदिर और मस्जिद के कंगूरों पर गिद्ध बैठने लगे हैं.
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Oh
जवाब देंहटाएंगुड है। गाँव के अच्छे दिन आये ही समझो।
जवाब देंहटाएंअब ...? ये हालात न रहने देंगें ये चुनाव लड़ने वाले :(
जवाब देंहटाएंसटीक ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन ! यह भी विडम्बना ही है कि विकास के साथ मनों में दुर्भावना, स्वार्थ, वैमनस्य की भी वृद्धि होती जाती है और मानवता कहीं पिछड़ने लगती है !
जवाब देंहटाएंसुंदर ! भगवान उन गाववालों को चुनाव लड़नेवालों की बुरी नज़र से बचाए. चुनाव सिर्फ़ चुनाव के सही तरीके से ही हो .
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