मेरे
पड़ोसी का बेटा बचपन से ही बड़ा आदमी बनने के ख़्वाब देखा करता था. उसकी चाह पूरी
होती भी दिखने लगी जब पढ़ाई-लिखाई में उसकी कोई रूचि न रही, लेकिन बातों का
पहलवान निकला. और आख़िर वो एक दिन भी आ ही गया जब ‘सीधे बारहवीं करें’ टाइप एक
कॉलेज से उसके लिए स्नातक की डिग्री जुटा
ली गई. पिता ने एक वकील दोस्त की निगेहबानी में समाजसेवा के लिए उसे एक एन. जी.
ओ. खुलवा दी. बाक़ायदा बोर्ड लगाया गया. ख़र्चे की स्कीम बना ली गई. हर तरह के रजिस्टर
और वाउचर भी तैयार कर लिए, बस पैसे आने का ही मसला कुछ बन नहीं रहा था.
पर
उस शाम, उनके घर जश्न का सा माहौल था. बाक़ायदा कुछ सेलिब्रेशन सा चल रहा था. घर
में कई लोग आए हुए थे. हल्के संगीत पर खाना-पीना हो रहा था. बीच-बीच में, ठहाकों की भी आवाज़ बाहर तक आ रही
थी. घर के बाहर कई गाड़ियां पार्क थीं.
मैंने
घर में घुसते हुए पत्नी से पूछा –‘तो इनके बेटे का रिश्ता हो गया क्या ? लड़की वाले कौन लोग हैं जी ?’
‘नहीं
जी. उसकी मां बता रही थी कि एन. जी. ओ. के लिए ग्रांट मिलने की बात आज फ़ायनल हो
गई है.’ – कहते हुए पत्नी रसोई में चली गई.
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यह तरकीब हमे आज से ३५ साल पहले कोई बता देता! आज यूँ घास न सही सब्जी न छील थे होते.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुतों ने खोज रखी है ये बड़ा आदमी बनने वाली राह.....
जवाब देंहटाएंजितनी बड़ी ग्रांट, उतना बड़ा आदमी! जो कुछ नहीं करते, कमाल करते हैं! (एन जी ओ बना कर)
जवाब देंहटाएंमेरा सामना भी कभी कभार इस तरह के लौंडे-लफाड़ियों से होता है.. बातचीत में बिल्कुल अंगूठा टेक लेकिन सेहत में होटलों के बाउंसरों जैसे। क्या काम करते हैं?....अपने जीजा वीजा के साथ मिल कर कोई एनजीओ चलाते हैं, लेकिन विज़िटिंग कार्ड वे केवल एक ही रखते हैं, आप के देख लेने के बाद वापिस अपने भारी-भरकम, बीसियों कार्डों से ठसाठस भरे बटुए में ठूंस लेते हैं। चलो, ठीक है, हर कोई अपनी रोज़ी रोटी का जुगाड़ कर रहा है, आखिर अच्छे दिन सब के लिए ही तो आए हैं।
जवाब देंहटाएंमजेदार
जवाब देंहटाएंऐसा ही होता है...
जवाब देंहटाएंयही तो होता है आजकल …
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