जहां
एक ओर, माता-पिता ने उसका अच्छे से लालन-पालन किया, वहीं उसका भावनात्मक विकास
भी बढ़िया हुआ. लाड़-प्यार के बीच पला वह बहुत भावुक लड़का था. पेंटिंग करना उसे
अच्छा लगता था. धीरे-धीरे वह श्रंगार रस की कविताएं लिखने लगा. पर पढ़ाई में ऐसे
लोगों के नंबर कुछ ख़ास नहीं आते. स्कूल खत्म करके किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला
नहीं मिला, एक पत्राचार पाठ्यक्रम में दाखिला लेकर किसी कॉल सेंटर में नौकरी
करने लगा. रात को जागता दिन में सोता. पेंटिंग का शौक जाता रहा.
कॉल
सेंटर एक दिन बंद हो गया. दूसरी जगह काम मिला नहीं. हालांकि मां-बाप उसे कुछ
कहते नहीं हैं, पर वह अब यथार्थवादी कविताएं लिखने लगा है.
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काश कि वो पेन्टिंग का शौक बचाए रख पाता ....:-(
जवाब देंहटाएंक्या बात !
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी और कार्टून मे प्रतियोगिता कारवाई जाये तो आयोजक निर्णायक पक्का बेहोश जाएगा ......
जवाब देंहटाएंकविताएं भी अब कितने दिन और उपजेंगी । यथार्थ के आगे एक से एक कविताएं आत्मदाह कर लेती हैं , काजल साहब ।
जवाब देंहटाएंओह
जवाब देंहटाएंयथार्थ लिए कथा ..... शौक पर ज़रूरतें भारी हैं
जवाब देंहटाएंयथार्थ कल्पनो पर भारी है !
जवाब देंहटाएंकुछ और काम सोच ले, जिसमे मेहनत कम करनी पड़े ;-)
जवाब देंहटाएंसही बात है भोजन की कल्पना से पेट नही भरता …
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