जहांगीर
ने किले के दरवाज़े पर एक घंटा टंगवा दिया था. जिस किसी को फ़रियाद करनी हो
तो वह घंटा बजा सकता था. एक दिन, एक ग़रीब आदमी घंटा बजाने पहुंचा तो उसे वकील ने
रोक लिया –‘तुम्हें न अरबी आती है न फ़ारसी, सुल्तान से अपनी बात कहोगे कैसे.’
ग़रीब उसके पीछे हो लिया -‘ठीक है माई-बाप, तो आप ही मेरा मामला ठीक करवा दो.’
वो
दिन है और आज का दिन, वकील तारीख़ पे तारीख़ दे रहा है, प्रोसीज़र पूरा ही नहीं
हो पा रहा है कि वो घंटा बजा सके. ग़रीब आदमी का सब कुछ अब वकील के पास है सिवाय
उसकी लंगोटी के. वकील की नज़र अब उसकी लंगोटी पर भी है. लेकिन ग़रीब को भरोसा पूरा
है कि एक न एक दिन वो घंटा जरूर बजा पाएगा.
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जरूर बजेगा । अच्छे दिन आयेंगे ।
जवाब देंहटाएंacchi laghukatha , aapki lekhni pahali baar padh rahi hoon , kartun ke to kayal hi hai ham
हटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (22.08.2014) को "जीवन की सच्चाई " (चर्चा अंक-1713)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंजी राजेन्द्र जी धन्यवाद आपकाण्
हटाएंबेचारा गरीब और तारीख पे तारीख :(
जवाब देंहटाएंउम्मीद नहीं टूटनी चाहिए...बढ़िया कथा
जवाब देंहटाएंफरियाद ऊपर तक पहुँचते पहुँचते,इस प्रतिक्रिया में,हम अपनी यादाश्त गवा बैठते है,
जवाब देंहटाएंओर फिर घंटा बजता है-आवाज तक नहीं पहुँचती. इंसाफ मिल जाता है.
बेचारा ,वकील का मारा !
जवाब देंहटाएंमतलब वकील ने उल्टा मुवक्किल का ही घंटा बजा दिया! :-)
जवाब देंहटाएंसुंदर लघु कथा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया , काजल भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर ( संकलक ) ब्लॉग - चिठ्ठा के "साहित्यिक चिट्ठे" कॉलम में शामिल किया गया है। कृपया हमारा मान बढ़ाने के लिए एक बार अवश्य पधारें। सादर …. अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंकृपया ब्लॉग - चिठ्ठा के लोगो अपने ब्लॉग या चिट्ठे पर लगाएँ। सादर।।
जी धन्यवाद.
हटाएंआज नहीं तो कल महकेगी ख़्वाबों की महफ़िल
जवाब देंहटाएंघंटा क्या घंटा बजा पायेगा ? :-(
जवाब देंहटाएंलंगोटी नजर करके ही सही, एक दिन घंटा जरूर बजायेगा.
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा
जवाब देंहटाएंवकील का चूल्हा ऐसे फर्यादी की आग पर जलता है।
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