सड़क किनारे उसके पास थोड़ी सी ज़मीन
थी. उसी पर कुछ अपनी खेती, कुछ खेती बटाई पर लेकर परिवार का पेट पाल रहा था. फसल
के दिनों पूरा परिवार जुटकर मेहनत करता. फिर फसल का इंतज़ार और अपनी गाय की
सेवा.
एक दिन गांव में एक लाला
जी आए और समझा-बुझाकर उससे ज़मीन खरीद ली. उस ज़मीन पर गेट-चारदीवारी बनाकर एक शैड
सा डाल दिया. वह गांव के बाहर, ज़मींदार जी के अहाते में किराए पर रहने लगा.
बेटे को मोटर साइकिल ले दी. सबने नए-नए कपड़े सिलाए, औरतों के लिए पहली बार
गहने भी आए. सूमो गाड़ी करके सब रिश्तेदारों के यहां घूमे. जो पैसा बचा रहा उसे
बैंक में जमा कर दिया. लाला जी ने उसे चौकीदार रख लिया और बड़े बेटे को मज़दूरी
पर. घर के बाकी लोग भी लाला जी की फैक्ट्री से माल घर ले जाते और उस पर छोटा मोटा
काम करके लौटा देते, उन्हें भी चार पैसे मिल जाते. थैली में आटा-दाल ला कर खाते
और सो रहते. जब कभी लाइट न होती या कभी ऑर्डर न होते, या फिर लाला जी ही नहीं
होते तो काम बंद रहता. दिहाड़ी भी उसी हिसाब से कट जाती. एक दिन पता चला कि
लाला जी ने काम बंद कर दिया क्योंकि काम ठीक नहीं चल रहा था और सरकारी टैक्स
की रियायत भी ख़त्म हो गई थी.
उस शाम जब वह आटा ख़रीदने
दुकान पर गया तो उसने फिर रेडियो पर सुना कि किसी और किसान के अात्महत्या कर
लेने की ख़बर आ रही थी.
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नौकर बनो अभियान :-(
जवाब देंहटाएंयही सब कुछ देखने के लिए किसान जिन्दा है, इससे अच्छा तो अपनी जमीन के लिए शहीद हो जाना. आखिर वही जमीन तो उसकी मातृभूमि है ...
जवाब देंहटाएंयही सब कुछ देखने के लिए किसान जिन्दा है, इससे अच्छा तो अपनी जमीन के लिए शहीद हो जाना. आखिर वही जमीन तो उसकी मातृभूमि है ...
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी!
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