सोमवार, 4 जुलाई 2016

(लघुकथा) मेड.

वह भार्इ-बहनों में सबसे बड़ी थी. बचपन में ही एक आदिवासी गांव से शहर गर्इ थी.  अपने बचपन में, दूसरे परिवारों के बच्चे संभालने का काम किया. बड़ी हो गर्इ तो घरों में नौकरानी का काम किया. लोग उसे मेड कहते थे. हर महीने गांव मनिऑर्डर भेजती. गांव जाना तभी होता था जब कोर्इ शादी-विवाह हो. एक बार गांव गर्इ तो घर वालों ने उसका विवाह भी करवा दिया. पति को साथ ले आर्इ, एक कमरा किराए पर ले लिया, पति को एक सि‍क्‍योरि‍टी एजेंसी में चौकीदार रखवा दि‍या.

लोगों के घरों में काम करना बहुत थका देता था. तभी उसे किसी बीमार बुज़ुर्ग की तीमारदारी का काम मिला. उसने पाया कि इस काम में मेहनत कम थी, पैसा और इज़्ज़त ज्यादा. एक दिन वह बुज़ुर्ग गुज़र गया. कुछ दिन इंतज़ार के बाद उसे कहीं और वही काम मिल गया. धीरे-धीरे उसके लिए यह आम हो गया कि जिस किसी की तीमारदारी करती वह उम्र या बीमारी से, कुछ समय बाद गुज़र जाता. क्रियाकर्म निपटाने के बाद, किसी दूसरे के यहां, फिर नए सिरे से वही तीमारदारी.  किसी के मरने और नया काम मिलने के बीच अक्सर कुछ समय मिलता तो वह गांव हो आती. 

एक बार इसी तरह वह गांव गर्इ तो पाया कि उसकी मां बहुत बीमार थी. उसने मां की भी खूब सेवा की पर मां बच सकी. मां का क्रियाकर्म कर के वह शहर लौट आर्इ. वह पहली बार मृत्यु पर असहज थी. 

अब वह नर्सिंग केयर का काम नहीं करना चाहती थी. उसने किसी के घर में फिर बच्चे संभालने का काम ढूंढना शुरू कर दिया.
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