शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

लड़कि‍यॉं



लड़कि‍यॉं,
बस लड़कि‍यॉं होती हैं.

घंटों,
घीर-गंभीर हो
मॉं के दुपटृटे ओढ़ खेलती हैं,
मुस्‍कुराती हैं,
और फि‍र यकायक
खि‍लखि‍ला के हँस देती हैं.

लड़कि‍यॉं,
बस लड़कि‍यॉं होती हैं.

सड़क पार करती हैं तो
सड़क के ठीक बीच जा ठि‍ठकती हैं
गाड़ि‍यां उन्‍हें बचाते-बचाते बड़ी मुश्‍कि‍ल से रूकती हैं,
वे कसमसा कर मुस्‍कुराती हैं
भाग कर सड़क पार कर जाती हैं.

फूलों के गुच्‍छों सी दि‍खती हैं,
डलिया सी
महकती हैं
चहकती हैं,
कभी छमक-छमक तो कभी गमक-गमक
यहॉं वहॉं चलती हैं,
बस मॉं से मचलती हैं.

जो,
घर में आती हैं
पूरे घर को खुशि‍यों से भर देती हैं,
घर से जाती हैं तो
ऑसुओं से भर जाती हैं.
बाक़ी,
...चुपचाप कोखों में मर जाती हैं

लड़कि‍यॉं,
बस लड़कि‍यॉं होती हैं.

 
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5 टिप्‍पणियां:

  1. बस लड़कियाँ होती हैं.
    पर बदलते समय को
    कुछ-कुछ समझने लगी,
    जीने की कोशिश,
    करने लगी हैं लड़कियाँ!

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  2. बहुत ही गंभीर और प्यारी सी कविता ..सच कहा लड़कियां तो घर की रौनक होती है ...थम जाये तो हंसी और बह जाये तो पानी ....

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