बहुत पुरानी बात है. कहीं दूर, गधों का एक देश था. उस देश में बहुत सी कंपनियां
थीं. हर कंपनी की एक कस्टमर केयर सेवा थी. हर कस्टमर केयर सेवा में अंग्रेज़ी बोलने वाले भांति-भांति
के गधे बैठे होते थे जिन्हें उनके ऊपर वाले गधों ने कुछ-कुछ गधई निर्देश दिए
हुए होते थे. सबसे मज़े की बात यह, कि जैसे गधों के सींग नहीं होते, उसी
तरह उन गधों के भी न तो नाम होते थे और न ही टेलीफ़ोन नम्बर. वे सब सामूहिक रूप से केवल ‘टोल-फ़्री
कस्टमर केयर नंबर’ के नाम से जाने जाते थे.
वे गधे एकदम बबुआ किस्म के गधे होते थे जिन्हें पता ही नहीं होता था कि
FAQ (बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न) के अलावा भी, बाहर एक अलग दुनिया हो सकती
थी. मतलब यह कि वोह निरे गधे थे. उनकी पूरी की पूरी दुनिया ही गधेड़ी थी. हालत
यह थी कि उनके मालिक गधे थे, उनके मैनेजर गधे थे. उनके नौकर गधे थे, उनके
कॉल-सेंटर/ कस्टमर केयर सेवा में भी गधे ही गधे थे. और तो और, उनके जो ग्राहक थे वे
तो उन सबसे बड़े गधे थे, वर्ना उनके ग्राहक ही क्यों होते.
उस देश के हाकिम ने एक दिन KYC (अपने ग्राहक को जानें) का हल्ला मचा मारा. बस फिर क्या था, हर ग्राहक साल दर साल, पता ही नहीं कितनी
बार KYC-टाइप काग़ज़ देता रहता. हालत तो यह हो गई कि ग्राहकों को पूरा भरोसा हो चला
था कि भविष्य में भी, उनसे इसी तरह के काग़ज़ात देते रहने का अलौकिक सुख कभी छीना
ही नहीं जाएगा. उन्हें कभी-कभी ख़्याल भी आता कि उस देश में जगह-जगह फैले
तरह-तरह के ओम्बड्समेन्न की पगार जस्टीफ़ाई करने का वे ज़रिया बनें पर फिर
मुस्करा कर टहल भर जाते खुद से ये कह कर कि -''चलो, छोड़ो
यार, गोली मारो. ', गधे जो ठहरे.
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