ड्राइवर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ड्राइवर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 13 नवंबर 2013

(लघुकथा) ड्राइवर



उन दोनों में अच्‍छी दोस्‍ती थी. वे दोनों ही ड्राइवर थे. एक प्राइवेट कार का, दूसरा सरकारी कार का. दोनों के साहब लोगों के दफ़्तर एक ही बि‍ल्‍डिंग में थे. सुबह अपने-अपने साहबों को दफ़्तर पहुंचाने के बाद गाड़ि‍यां पार्किंग में लगा कर सारा दि‍न साथ ही बि‍ताते थे वे. उनके जैसे दूसरे कई और ड़ाइवर भी थे. लगभग सभी एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानते समझते थे.

एक दि‍न बातचीत में, प्राइवेट वाले ने बताया कि अगर उसे कभी पैसे की ज़रूरत आ पड़े तो उनकी कंपनी कुछ छोटा-मोटा  एडवांस दे देती है जो बाद में सेलरी से एडजस्‍ट हो जाता है. सरकारी ड़्राइवर ने कहा कि भई उनके यहां तो सरकार में इस तरह से एडवांस देने का कोई सि‍स्‍टम नहीं है पर हां, जब कभी ऐसी ज़रूरत आ ही पड़़े तो ट्रैफ़ि‍क में तेज़ी से चलते हुए एक ज़ोरदार ब्रेक मार देता हूं. पीछे वाली गाड़ी मेरी कार में ठुक जाती है, कार रि‍पेयर के लि‍ए भेजनी पड़ती है, वर्कशॉप वाला रि‍पेयर के ख़र्चे में से दो-तीन हज़ार का कमीशन दे देता है. साथ ही साथ, दो चार दि‍न की छुट्टी भी मि‍ल जाती है. वर्ना, कम पेट्रोल भरवा कर ज्‍यादा पेट्रोल की पर्ची लेने से भी कुछ कुछ काम तो हर महीने यूं भी चलता ही रहता है.



फि‍र दोनों हँस दि‍ए.
00000

गुरुवार, 2 मई 2013

(लघुकथा) ड्राइवर


वह इधर-उधर फुटकर ड्राइवरी करते-करते उकता सा गया था. हर दि‍न नया काम खोजना, अनजान लोगों को, अलग-अलग गाड़ि‍यों में अनजान जगहों पर ले जाना अब उसे कुछ असहज सा लगने लगा था. फि‍र, कि‍सी-कि‍सी दि‍न काम मि‍लता भी नहीं था.

उसने एक अख़बार में वि‍ज्ञापन पढ़ा, मर्सि‍डीज़ कार चलाने के लि‍ए अनुभवी ड्राइवर की आवश्‍यकता है. वह धुले हुए कपड़े पहन कर बात करने चल दि‍या. कोठी के बाहर एक नई मर्सि‍डीज़ खड़ी थी, शायद उसी के लि‍ए वि‍ज्ञापन था. सारी बातचीत ठीक ठाक ही हो गई. अंत में लाला ने कहा कि मैं जब भी गाड़ी में बैठने के लि‍ए आऊं तो कार का दरवाज़ा खोलने के लि‍ए उसे भागकर आना होगा. उसने कहा कि सर, डोर खोलने के लि‍ए मैं हमेशा आपके कार तक पहुंचने से पहले ही वहां रहूंगा. लाला ने कहा कि नहीं, मैं चाहता हूं कि तुम हमेशा भाग कर ही मेरे लि‍ए दरवाज़ा खोलो. उसने कुछ पल सोचा. फि‍र उठते हुए बोला कि अच्‍छा सर मैं घरवालों से भी बात करके आपको बताता हूं. और नमस्‍ते कर वह बाहर नि‍कल आया.

अब अगले दि‍न से रोज़ नया काम खोजना, अनजान लोगों को, अलग-अलग गाड़ि‍यों में अनजान जगहों पर ले जाना उसे अच्‍छा लगने लगा था.
00000

शनिवार, 18 अगस्त 2012

(लघु कथा) दो बेचारे



वह ड्राइवर था, बहुत अच्‍छा ड्राइवर था. दूर दूर तक लोगों ने उसकी ड्राइविंग के चर्चे सुन रखे थे. एक दि‍न उसने फ़ैसला कि‍या कि‍ चलो अपनी ही गाड़ी ख़रीद ली जाए.

वह शोरूम जाकर बोला –‘लाला जी एक अच्‍छी सी कार दि‍खाओ.’
उसे देख कर लाला की तो बाछें खि‍ल गईं –‘चलो छोड़ो, कार खरीद कर क्‍या करोगे. ये लो मेरे यहां ड्राइवरी कर लो.’ अपनी कार की चाभि‍यां उसकी तरफ फेंकते हुए शोरूम मालि‍क बोला. उसने मन मसोस कर मना कि‍या और बाहर आ गया.

वापसी में उसे वह फ़ोटोग्राफ़र दोस्‍त मि‍ला जो सुबह कि‍सी प्रकाशक के पास अपनी कि‍ताब छपवाने की बात करने गया था. उसका उतरा हुआ मुँह देख कर उसने पूछा –‘क्‍यों, तुम्‍हारे साथ भी यही हुआ क्‍या ?’

दोनों ही मुस्‍कुरा दि‍ए और फि‍र बि‍ना कोई बात कि‍ए साथ-साथ चलने लगे.
00000