एक दिन, कभी न खुलने वाली एक खिड़की के
बाहर पक्षियों का एक जोड़ा आ कर बैठा. तिनका तिनका ला कर एक घोंसला बनाया उन्होंने,
फिर उसमें दो अंडे दिए. दोनों बारी बारी से उन अंडों को सेते. एक दिन उन अंडों
से दो छोटे-छोटे बहुत सुंदर जीवन निकले. अब वे बारी बारी से उनके लिए कुछ-कुछ ला
कर खाने को देते. बच्चे तेज़ी से बढ़ने लगे. दोनों पक्षी मिल कर उन्हें उड़ना
सिखाते. बच्चे पंख फड़फड़ाते पर उड़ न पाते. लेकिन एक दिन, बच्चों ने अपने
पंख तौले और उड़ान पर निकल गए. फिर वे कभी नहीं लौटे. धीरे-धीरे घोंसले के तिनके
बिखरने लगे...
खिड़की के इधर, अरसे से ये सब देख रहीं बूढ़ी
नम ऑंखों ने आज बड़ी लम्बी और गहरी सॉंस ली और फिर हौले से बंद हो गईं.
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...ओह ! ऐसा ही हो रहा है ।
जवाब देंहटाएंआईना दिखाती लघु कथा
जवाब देंहटाएंओह।
जवाब देंहटाएंना कोई अपेक्षा, ना कोई चाह, ना कोई लालच। ऐसा ही जीवन दर्शन मनुष्य का भी होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंकाश ऐसा ही जीवन मनुष्य का होता,,,,
जवाब देंहटाएंRECECNT POST: हम देख न सके,,,
सुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंकाश इंसान भी पक्षियों की तरह होता ...मोहपाश में नहीं बाधता ..
जवाब देंहटाएंयही है जीवन का सत्य
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