बाबा पहली बार अपने बेटे के पास, गॉंव से
शहर आए थे. बेटे ने यहां अपना काम जमा लिया था जबकि वे वहां मास्टरी से रिटायर
हुए रहे.
आज घर में धुर सुबह से ही बहुत चहल-पहल
थी. कोई किसी को जगा रहा था. कोई गीज़र गर्म करने को कह रहा था तो कोई नए कपड़े
की लगाए था. कोई पूजा सामग्री को पूछ रहा था. बहू ने भजन का चैनल लगा दिया था. आज
बड़ा शुभ दिन था, मुंह-अंधेरे मंदिर जा कर ही पूजा-अर्चना करना तय हुआ था. पहले
सोचा कि सुबह ख़ुद ही कार लेकर मंदिर चले चलेंगे फिर लगा कि नहीं, मंदिर दूर
है इसलिए अच्छा है कि ड्राइवर कर लिया जाए, मन प्रसन्न रहेगा.
बाबा को भी पूछा कि चलोगे ? जैसा कि होता है, बाबा ने मना कर दिया कि
नहीं भई आप लोग ही हो आओ. सब, बाबा को लाइटें और गेट ठीक से बंद कर लेने की हिदायत
दे कर निकल गए. बाबा कमरे में वापिस आ गए.
‘मध्यवर्ग की जेब में पास चार पैसे आ
जाएं तो भगवान का जीना दूभर कर देता है ये‘- टी.वी. बंद करते हुए बाबा अपने से
बुदबुदाए और फिर सोने चल दिए.
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मैं ये सोच रहा हू कि बाबा को नींद आई या नहीं। भगवान तो मुस्कुराते हुए सब देखते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंसही कहा बाबा ने|
जवाब देंहटाएंलोग सत्कर्म नहीं करते बल्कि मंदिरों आदि में जाने का ढोंग मात्र रचते है|
अब तो लोगों को समझना चाहिए कि बाबा ठीक थे ।
जवाब देंहटाएंसही बात है...
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