ओ रे बाबा गॉंधी,
वो टोपी
जो तूने तो कम पहनी,
पर
हिन्दुस्तान को ज्यूँ गहना दी,
तेरे जाने के बाद
चपाटों ने
पूरे देश को पहना दी,
फिर न पूछ कि
तेरी इस टोपी से क्या क्या व्याभिचार हुआ.
रोज़ हुआ, हर बार हुआ.
अबके जो नए हल्लाबोली से आए हैं
इसे फिर संग लाए हैं.
घर से चले तो जेब में मोड़े हैं
मजमे में पहुँचे तो
कश्ती सी ओढ़े हैं,
ढर्रे की रवानी
ज़िद सी ठानी,
ऐसे में,
जगजीत मुझे
न जाने क्यों
फिर तेरी याद सी हो आई कि
वो काग़ज़ की कश्ती
वो बारिश का पानी….
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शनिवार, 20 अक्तूबर 2012
टोपीगान
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टोपी पहनाने का आज दस्तूर चल पड़ा है ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!