नगर की एक हाउसिंग सोसायटी में 3 बड़े बेटे मां-पिता के
साथ रहते थे. पिता नौकरी से रिटायर हो चुके थे. बेटे नौकरियां करते थे. मां घर
की देखभात करती आई थी. मां का स्नेह बेटों पर इतना अधिक था कि, वे
बिन पूछे घर से निकल भी नहीं सकते थे. इस
स्नेहमहिमा से उनके सभी रिश्तेदार भी परिचित थे.
सबसे बड़े बेटे की शादी की तो स्नेहप्रताप के चलते बेटी
वाले ने, बेटी-दामाद को उसी सोसायटी में अलग फ़्लैट ख़रीद कर दे दिया. मां, बेटे
को सुबह उठने से लेकर रात सोने तक इंटरकॉम, मोबाइल और लैंडलाइन पर हिदायतें देती.
बेटे के दफ़्तर जाने से पहले ही बहू को अपने यहां लिवा लाती क्योंकि बेटे की शादी
करते ही उसने अपने घर की बर्तन और झाड़ू-पोछा करने वाली माई हटा दी थी. बहू दिन
भर सारे काम करती, सास के पीछे-पीछे सब्जी-परचून के थैले लिए डोलती, ज़मीन पर
बैठती, दिन में उसे ऊंघना मना था, सास-ससुर के सामने पति या देवरों से बात करने
की भी मनाही थी.....
कुछ महीने में बहू अपने घर चली गई. अब तलाक का मुक्दमा चल
रहा है. मॉं और तीनों बेटे अब फिर से एकजुट हैं.
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आज भी आम है ये सब..... सब कहती कथा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मोनिका जी.
हटाएंमुझे पता है कि दूसरे अधिकांश पाठकों के लिए यह स्वीकार करना कितना असहज होगा.
एक रिश्तेदार हैं मेरी, उनकी बहू उनके सामने या साथ कभी नहीं बैठ सकती। यहां तक जब प्रेग्नेटं थी तब भी या तो खडी रहती या उनसे नीचे जैसे जमीन पर ही बैठने की इजाजत थी।
जवाब देंहटाएंबुरा लगा देखकर पर किसको समझायें
सब तरह के लोग हैं इस समाज में
प्रणाम
काश ऐसी कहानियां केवल काल्पनिक होतीं :-(
हटाएंबिलकुल करारी चोट की है आपने सर जी, अपनी आँखों से देख चुकी हूँ अपने आस पास ऐसा.
जवाब देंहटाएंआश्चर्य कि अभी भी समाज में ऐसे लोग हैं । आँखें खोलती कथा ।
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