गुरुवार, 26 सितंबर 2013

(लघुकथा) शतरंज



एक देश में एक अदालत थी और एक था चोट्टा.
उसी देश से, चोट्टे और अदालत का संवाद:-

अदालत तुम देश कैसे चला सकते हो ?
चोट्टा मैं क्‍या करूं, लोग मानते ही नहीं.
अदालत ठीक है, मैंने तुम्‍हें आज़ाद कि‍या.
चोट्टा रूको रूको मैं कानून बदल के लाता हूं.
अदालत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव नहीं चलेगा.
चोट्टा ठीक है संवि‍धान में ही बदलाव कर देता हूं.
अदालत वो तुम कर नहीं सकते, याद है न भारत का केशवानंद भारती केस ?

चोट्टे और अदालत का संवाद समाप्‍त हुआ.
00000 

6 टिप्‍पणियां: