वह
बहुत बड़ा लीडर था. और यह, उस लीडर के मातहत एक छोटा सा मुलाजिम. लीडर एक दिन इस
मुलाजिम के यहां दौरे पर आया. साथ चल रहे लोगों पर रौब गांठने की गर्ज़ से, कुछ
बहाना बना कर उसने मातहत को एक थप्पड़ जड़ दिया. मातहत ने केस दर्ज़ करा दिया.
मामला चलता रहा. साल-महीने बीतते रहे.
एक
दिन, जब अदालत में केस के फ़ैसले की घड़ी आई तो लीडर ने मातहत को कई लाख रूपए का
हर्ज़ाना देने की पेशकश की. मातहत ने पेशकश ठुकरा दी. लीडर को समझ आ गया कि अब उसका
जेल जाना तय था. उसने जज की तरफ बेबसी से
देखा. जज ने बताया कि कानून के हाथ बंधे
हुए हैं, वह दोषी साबित हुआ है, अब बस एक ही चारा है, यदि मातहत समझौते के तहत उसे
माफ़ कर दे तो वह जेल जाने से बच सकता है. लीडर ने मातहत की ओर देखा, पर वह जज की ओर देख रहा था. जज ने मातहत से पूछा तो मातहत
ने कहा कि यदि उसे भी, लीडर को एक थप्पड़ मारने दिया जाए तो वह उसे माफ़ कर
सकता है. जज ने लीडर की ओर देखा. वह जेल नहीं जाना चाहता था. उसने अपने वकील की ओर
देखा. वकील ने कुछ नहीं कहा. लीडर ने जज की तरफ देख कर हामी में सिर हिला दिया
और फिर वह नीचे की ओर देखने लगा. जज ने मातहत की ओर इशारा कर थप्पड़ मारने की
इजाज़त दे दी.
वह
धीरे-धीरे लीडर की ओर बढ़ा और उसके पास जाकर रुक गया. लीडर ने ज़ोर से आंखें भींच
लीं. मातहत ने थप्पड़ मारने के बजाय कहा –‘तुम्हारे लिए बस इतना ही काफी है.
मैं तुम जितना नहीं गिर सकता. मैंने तुम्हें माफ़ किया.’
फिर
वह घूमा, जज साहब को झुक कर नमस्ते की और कोर्ट से बाहर निकल गया.
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