मंगलवार, 24 जून 2014

(लघुकथा ) जीवन



उसकी पूरी ज़िंदगी नौकरी में ही बीत गई, नौकरी के अलावा उसने कभी कुछ न कि‍या, वह रि‍टायर होने को था. समझ नहीं पा रहा था, अब क्‍या करे. एक दोस्‍त से राय लेने गया.

दोस्‍त ने बताया –‘’मेरी एक रि‍श्‍तेदार हैं. टीचरी से रि‍टायर हुए बीसेक साल हो गए हैं. अकेली एक सोसायटी के फ़्लैट में रहती हैं. सुबह उठकर पक्षि‍यों को पानी डालती हैं. सुबह-शाम सैर करती हैं. दरवाज़े से अख़बार उठाने जाती हैं तो एक बि‍ल्‍ली इंतज़ार कर रही होती है, उसे एक कप दूध पि‍लाती हैं. खाना बनाने और झाड़ू-पोछा करने वाली आती है तो रसोई में उसकी मदद करती हैं और उसकी दवाई का खर्च उठाती हैं. कभी-कभी कुछ-कुछ पकवा कर उसके परि‍वार को भी भेजती हैं. दोपहर में पड़ोस के कुछ बच्‍चे खेलने आ जाते हैं, उन्हें पढ़ा भी देती हैं. हर साल जन्‍माष्‍टमी और पंद्रह अगस्‍त पर बच्‍चों को डांस की तैयारी करवाती हैं. सोसायटी के गेट पर दो चौकीदार होते हैं, वे रात को चाय पी सकें इसलि‍ए शाम को एक कप दूध उन्‍हें भी भि‍जवाती हैं. एक ड्राइवर है जि‍से कभी-कभार गाड़ी चलाने के लि‍ए बुलाती हैं, उसके बच्‍चों का हाल-चाल नि‍रंतर पूछती हैं, वे बच्‍चे भी बीच-बीच में इनके यहां खेलने आते हैं, त्‍यौहार के बहाने उसकी कुछ मदद भी करती हैं. हम बुलाते हैं तो उनका कहना होता है कि‍ उनके पास समय नहीं है.’’  

उसे अपना जीवन अब बहुत छोटा दि‍खने लगा था. वह बस मुस्‍कुरा भर दि‍या.
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12 टिप्‍पणियां:

  1. bhut sundar .. sarthak sandesh deti huyi kahani …. yah chhoti si kahani jeevan ka paath padha gayi ….

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  2. जीवन में बहुत कुछ है करने के लिए

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  3. बहुत ही सुन्दर और बोधात्मक लघु कथा

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  4. सेवानिवृत्ति के कगार पर खड़े/सेवानिवृत्त लोगों के लिए काउंसलिंग ब्यूरो खोल लो सर, बढ़िया चलेगा!

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  5. बहुत ज़रूरी सन्देश … पूरा जीवन नियमित दिनचर्या के बाद रिटायर होने के बाद यह सवाल तो हर एक के मन में उठता ही होगा

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  6. मन ठहर कर सोचने लगा है ...सुन्दर कहानी

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  7. जीना इसी का नाम है !
    प्रेरक! अनुकरणीय!

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  8. सिंपल फार्मूला! नौकरी के बाद शुरू होती असली ज़िंदगी

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