शनिवार, 4 अगस्त 2012

(लघुकथा) परि‍णति‍


एक गाँव में एक सीधा सा ईमानदार बूढ़ा आदमी रहता था. आत्‍मा के जीवन-यापन के लि‍ए वो आए दि‍न, शहरों में जा कर अनशन करता रहता था. एक दि‍न, मार्केटिंग वाले कुछ लोगों की नज़र उस पर पड़ी तो वे खुद तो उसके चेले हो ही लि‍ए, ढेरों दूसरे चेले भी जुटा लाए.

एक बार अनशन के तय दि‍न बाबा को कुछ काम आ पड़ा. चेलों ने बाबा को कॉपी करने की ज़ि‍द की, बाबा ने भी हामी भर दी. लेकि‍न जोश-जोश में चेले, जब अनशन को आमरण-अनशन घोषि‍त करके फॅस गए तो उन्‍हें समझ आया कि‍ ये तो बड़ा मुश्‍कि‍ल काम है. उन्होंने बाबा को बर्गलाया, कि‍ चलो ये हठयोग छोड़ कर कोई दूसरा आसान सा धन्‍धा करते हैं. उन्‍होंने एक राजनैति‍क पार्टी बना दी. अब, बाबा उनके पीछे-पीछे पगलाया सा गली-गली वोट मॉंगता घूमता रहता है, बुढ़ापे में. 
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9 टिप्‍पणियां:

  1. एक कार्टून की पटकथा लगी. वैसे हर कार्टून के पीछे ऐसी लघु कथाएं होती तो हैं. सुन्दर.

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    1. सुब्रामनि‍यन जी, सच्‍चाई तो है कि‍ जैसे एक वि‍चार कार्टून बन कर कौंध जाता है वैसे ही लघुकथा के साथ भी होता है. आपने सही कहा है :)

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  2. काजल कुमार जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'कथा कहानी' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 7 अगस्त को 'परिणति' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  3. वाह काजल भाई वाह ........क्या व्यंग्य कसा हैं ..मज़ा आ गया ...))))))

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  4. एक वर्ष पश्चात बाबा हे राम ! हे राम ! कहते हुवे मर गया.....

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