एक
गाँव था. उस गाँव में बहुत सी बकरियाँ थीं. ज़्यादातर बकरियाँ गँवार थीं. और जहाँ
देखो वहीं मुँह मारती रहती थीं वे बकरियाँ. मुँह मारने की दौड़ में, वे आपस में बारी-बारी
एक-दूसरे से अपना-अपना हक़ भी माँगा करती थीं. आमतौर से एक-दूसरे की बात मान लेती
थीं वे बकरियाँ पर, जो कभी किसी धड़े ने बात न मानी और बारी फलॉंग कर फिर कहीं मोटा
बुटका भर लिया तो दूसरियों को ग़ज़ब के मरोड़ उठते थे. पूरा गॉंव वो सिर पर ऐसे
उठा लेती थीं कि सारा-सारा गॉंव खाए की जुगाली तक करना भूल जाता था.
एक
दिन फिर वही दंगा हुआ. दूसरे धड़े ने, पहले धड़े की बड़ी बकरी पकड़ ली और उसे घेर
कर माल उगलने को कहा. पर वो बड़ी बकरी भी कमाल की काइयॉं थी. उसने भी जवाब में
मेंमें-मेंमें कर दी, जब तक दूसरे धड़े की बकरियाँ मेंमें-मेंमें का मतलब समझतीं,
वो चलती भी बनी.
बाद
में पता चला कि उसने तो मेंमें-मेंमें भी नहीं की थी बल्कि वो तो जाते-जाते एक शेर
सुना गई थी.
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काफी करारा व्यंग्य करते हैं आप ...सभी राजनितिक पार्टीस को लपेटे में लिए हैं ...:)))
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्या बात हैं ......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..में.में.बहुप्रतीक्षित था..
जवाब देंहटाएंToo Good Kajal ji pichli posts bhee padhani hongi.
जवाब देंहटाएंअच्छी कथा हो
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