वह अकेला रहता था. छोटा-मोटा काम कर अपना पेट पाल रहा था. उसे कोई बहुत अच्छा खाना बनाना तो नहीं आता था पर फिर भी वह अपना खाना ख़ुद बना ही लेता था. एक दिन वह ब्रेकफ़ास्ट में आमलेट बनाने लगा तो उसे लगा कि अंडे में शायद चूज़ा बन रहा था. उसने यह सोच कर अंडा एक तरफ रख दिया कि चलो देखें क्या होता है. कुछ दिन बाद उस अंडे में से वाकई एक चूज़ा निकल आया. उसे लगा कि ये भी अच्छी रही. अगर मुर्गी हुई तो आगे चलकर अंडे मिलेंगे और अगर मुर्गा निकला तो एक दिन चिकन की दावत हो जाएगी.
वह चूज़े को रोज़ एक टोकरी के नीचे ढक कर काम पर चला जाता. चूज़ा बड़ा होने लगा तो उसने पाया कि वह एक मुर्गा था. फिर मुर्गे ने देखते ही देखते नियम से रोज़ सुबह बांग देना शुरू कर दिया. बल्कि वह खुद भी मुर्गे की बांग सुन कर ही उठने लगा. एक दिन सुबह मुर्गे ने बांग नहीं दी, वह उठने में लेट हो गया. उसने देखा कि मुर्गा अभी भी सो रहा था. उसके हिलाने-डुलाने पर भी वह नहीं जगा. उसके पड़ोसी ने सलाह दी कि शायद मुर्गा मर गया. अब वह बहुत दुखी था. पड़ोसी ने ढाढस बंधाया - ‘ मैं तुम्हारा लगाव समझ सकता हूं, पर कोई बात नहीं, दूसरा पाल लेना.’
‘नहीं, मैं तो सोच रहा था कि अगर इसके मरने का मुझे ज़रा भी शक होता तो मैं इसे कल ही बना कर खा लेता.’ – मुर्गे को टांग से उठाकर बाहर ले जाते हुए उसने भारी मन से कहा.
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उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecentPOST: रंगों के दोहे ,
ओह! यही तो होता है ,मरने के बाद भी इन्सान अपना फायदा ही सोचता है ...
जवाब देंहटाएंconclusion- vegetarians are kindhearted.
जवाब देंहटाएंanu
marne ke bad kaun kiska,INSAN KI FITRAT HI AISI HAE
जवाब देंहटाएंदरअसल मुर्गा उस व्यक्ति को जगाते-जगाते बोर हो गया था। उसने सोचा- चलो! अब चलते हैं, यह आदमी कभी जाग ही नहीं सकता!..हुआ भी यही, उसने मुर्गे के मरने के बाद जो दुःख व्यक्त किया उससे पता चलता है कि वह अभी तक जाग ही नहीं पाया।
जवाब देंहटाएं..इस अर्थ में कथा बेहतरीन लगी।
सहजता से सटीक बात कहती कथा
जवाब देंहटाएंवाह! मजा आ गया! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंhttp://voice-brijesh.blogspot.com
चलिए आज आपने अंडा भी फोड़ दिया :) वैसे कहानी का सबक यह है कि मुर्गे को समय पर फ्राई कर लेना चाहिए, ज्यादा इन्तजार करके कुछ हासील नहीं होता :)
जवाब देंहटाएंमानवीय-संवेदना का स्तर कितना गिर जाता कभी-कभी!
जवाब देंहटाएंमानव अपने स्वार्थों से इतना अभ्यस्त हो चुका है कि स्वार्थ से आगे जाकर सोच ही नहीं पाता। यह संवेदनाओं का खो जाना है।
जवाब देंहटाएंरे स्वार्थी मन ...
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