रविवार, 24 मार्च 2013

(लघुकथा) घोड़ा


बहुत पुरानी बात है. एक छोटा सा देश था. उस देश की आर्थिक स्थि‍ति बहुत ख़राब थी जबकि वहां का वि‍त्‍तमंत्री रोज़ अपना घोड़ा और कोड़ा लेकर टैक्‍स इकट्ठा करने नि‍कलता था. राजा चिंति‍त हुआ, उसने वि‍त्‍तमंत्री को अपने महल बुलाया और पूछा कि ऐसा कब तक चलेगा. वि‍त्‍तमंत्री ने कहा –‘महाराज एक कोड़ा और दे दो मुझे, और फि‍र देखो.’
राजा ने कहा –‘दि‍या गया.’
वि‍त्‍तमंत्री ने याद दि‍लाया –‘पर महाराज, मेरे पास कोड़ा ख़रीदने के लि‍ए पैसे नहीं हैं.’
ठीक है, इसका घोड़ा बेचकर इसे कोड़ा ले दो.’– राजा ने सेवादारों को आदेश दि‍या और शि‍कार पर चला गया.
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6 टिप्‍पणियां:

  1. वित्तीय बद-इंतजामिया पर करारा व्यंग्य .वित्त मानती की लूंगी और अहलुवालिया की पगड़ी खासी कीमती हैं .

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  2. यदि यही हाल रहा तो इस देश के वित्त मंत्री का भी यही हाल हो जायेगा !!
    बद-इंतजामिया वित्तीय प्रबंध पर करारा व्यंग्य

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  3. ho kya jayega ye hi to ho raha hai . जबरदस्त कटाक्ष . आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  4. घोडा और कोड़ा ....कमबख्तों को बहुत बढ़िया फोड़ा ...

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  5. लगता है वो राजा भी हमारे ही राजा की तरह बेवकूफ रहा होगा, वित्त मंत्री तो झारखंड वाले कोड़े की बात कर रहा था :)

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