वह एक साम्यवादी देश में पैदा हुआ और वहीं पला वढ़ा. उच्चशिक्षा
प्राप्त की. उसकी रूचि लेखन में थी इसलिए उसने लेखक बनने का निर्णय लिया.
उसके लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे लेकिन सरकारी तंत्र को वे पसंद नहीं आए, संपादकों ने
उसे छापना बंद कर दिया. उसने पुस्तकें लिखने की ठानी. पहली पुस्तक प्रकाशित
होते ही प्रतिबंधित हो गई और उसे नज़रबंद कर दिया गया. यह बात दुनिया भर में
फैल गई. संचार माध्यमों की, उसे स्वतंत्र कराने की मुहिम रंग लाई. सरकार ने उसे
देश छोड़ने की शर्त पर रिहा कर दिया. लोकतंत्र के हामी एक बड़े देश ने उसे अपने
यहां हाथोहाथ मानवीय आधार पर राजनैतिक शरण दे दी.
नए देश के एक विश्वविद्यालय में उसे पढ़ाने का काम भी मिल
गया. उसके जीवन में आया तूफ़ान थम गया.
एक सर्द शाम वह सिगरेट पीता हुआ भीड़ भरे बाज़ार से पैदल
घर लौट रहा था. सामने से आते हुए एक आदमी ने उसे रोक कर सिगरेट जलाने के लिए
माचिस मांगी. उसने माचिस दे दी. अजनबी ने सिगरेट जलाते हुए पूछा –‘क्या आपके
पास दो माचिस हैं?’ उसने कहा –‘यस कामरेड.’ अजनबी ने मुस्कुराते
हुए वह माचिस संभाल कर अपनी जेब में रख ली और दोनों अपने-अपने रास्ते चले गए.
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आज की ब्लॉग बुलेटिन जेब कट गई.... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंये हुआ ना असली कामरेडी भाईचारा. दोनो ही कामरेड थे?
जवाब देंहटाएंरामराम.
हमारे देश में भी बहुत शरणार्थी हैं ... :(
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