उनका भरा-पूरा छोटा-सा खुशहाल परिवार था, पति-पत्नी बिटिया
और मां. वह एक मल्टीनेशनल में बड़ी सी नौकरी करता था. कंपनी ने तीन बैडरूम वाला
फ़्लैट दे रखा था. पत्नी भी नौकरी करती थी पर बिटिया के जन्म के बाद से उसने
नौकरी छोड़ दी थी. बिटिया सबकी बहुत लाड़ली थी उसने ज़िद की कि उसे एक कुत्ता चाहिए. उसने समझाया तो सही पर मां-बेटी एक तरफ हो लीं. पत्नी
ने भी सिफ़ारिश की –‘बच्ची की बात मान लो ना, कुत्ता रखने का मेरा भी बहुत मन है.'
हफ़्ते भर बाद, आखिर वे एक डॉग-डीलर के यहां चले ही गए. जो
कुत्ता उन्हें पसंद आया, उसमें दिक़्कत ये थी कि उस नस्ल के कुत्ते को अलग
कमरा चाहिए होता है. एक कमरा पति-पत्नी के पास था, तो एक-एक दादी और पोती के
पास. ड्राइंग रूम में कुत्ता रखा नहीं जा सकता था. उनकी दुविधा देख मां ने कहा –‘बेटा, शहर में
रहते-रहते मेरा जी भर गया है, मैं गांव जाने की कहना ही चाह रही थी.’ बहू-बेटे ने खूब
ना-नुकर की – ‘नहीं मां, हम तुमसे कमरा कैसे खाली करवा सकते हैं.’ लेकिन मां ने भी
कुछ तर्क दिए. कुत्ता बाद में लेने की बात कह कर वे घर चल दिए.
मां के एक बार फिर कहने पर घर लौटते हुए रास्ते में, उसने
मां के लिए गांव की रेल-टिकट बुक करवा दी.
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त्याग की प्रतिमूर्ति "माँ"
जवाब देंहटाएंकहानी में कुत्तापालक औलाद को खलनायक बनाया जा सकता था पर मां-बाप अपने बच्चों से तो सहानुभूति तक नहीं चाहते, कुछ और की तो बात ही कहां. वे बच्चों की बददिमाग़ी को भी यह कह कर छुपा लेते हैं -'सॉरी बेटे, हम ही समय से पीछे छूट गए. तुम सही हो.'
हटाएं(यह सब, इस कहानी से बाहर रखा गया है)
सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने . आभार . ये है मर्द की हकीकत आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिकता पूर्ण है, आपका प्रति कमेंट पढने के बाद कुछ कहते नही बनता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
:)
हटाएंसम्पन्नता के अभाव
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(22-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
कुत्ता मा बाप से भी महत्वपूर्ण हो गया
जवाब देंहटाएंlatest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
कटु सच्चाई को कहती मर्मस्पर्शी लघु कथा ।
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