उन दोनों में अच्छी दोस्ती थी. वे दोनों ही ड्राइवर
थे. एक प्राइवेट कार का, दूसरा सरकारी कार का. दोनों के साहब लोगों के दफ़्तर एक
ही बिल्डिंग में थे. सुबह अपने-अपने साहबों को दफ़्तर पहुंचाने के बाद गाड़ियां
पार्किंग में लगा कर सारा दिन साथ ही बिताते थे वे. उनके जैसे दूसरे कई और
ड़ाइवर भी थे. लगभग सभी एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानते समझते थे.
एक दिन बातचीत में, प्राइवेट वाले ने बताया कि अगर
उसे कभी पैसे की ज़रूरत आ पड़े तो उनकी कंपनी कुछ छोटा-मोटा एडवांस दे देती है जो बाद में सेलरी से एडजस्ट
हो जाता है. सरकारी ड़्राइवर ने कहा कि भई उनके यहां तो सरकार में इस तरह से
एडवांस देने का कोई सिस्टम नहीं है पर हां, जब कभी ऐसी ज़रूरत आ ही पड़़े तो ट्रैफ़िक
में तेज़ी से चलते हुए एक ज़ोरदार ब्रेक मार देता हूं. पीछे वाली गाड़ी मेरी कार
में ठुक जाती है, कार रिपेयर के लिए भेजनी पड़ती है, वर्कशॉप वाला रिपेयर के ख़र्चे में से दो-तीन हज़ार का कमीशन दे
देता है. साथ ही साथ, दो चार दिन की छुट्टी भी मिल जाती है. वर्ना, कम पेट्रोल
भरवा कर ज्यादा पेट्रोल की पर्ची लेने से भी कुछ कुछ काम तो हर महीने यूं भी चलता
ही रहता है.
फिर दोनों हँस दिए.
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सरकारी वाला पक्का ताऊ है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
ap ki lok kathye to badi ruchikar hai.
जवाब देंहटाएंVinnie