दोनों
बहुत अच्छे दोस्त थे. वे आज एक ज़माने बाद दोबारा मिले. दोनों ने पूरी
ज़िंदगी साथ-साथ नौकरी कर के बिता दी थी. एक के बेटा-बेटी तो इंजीनियर और डॉक्टर हो
गए, पर दूसरे का इकलौता बेटा किसी तरह बी.ए. तो कर गया लेकिन उसका कुछ बना नहीं.
‘क्या
बताऊं, नौकरी के किसी भी इम्तिहान में पास नहीं ही हो पाया.’
‘किसी
पार्टी-वार्टी में ट्राई किया होता, शायद टिकट मिल जाती.’
‘ना
जी. वहां कहां नयों को जगह मिलती है, सभी अपने-अपने बेटे-बेटियों को आगे किए
रहते हैं.’
‘तो
फिर ?’
‘सोच रहा था कि बेटे को एक मंदिर खुलवा दूं पर वो नहीं
माना. आख़िर, एक एन. जी. ओ. खुलवा
दी है. एकदम मॉडर्न और प्रोफ़ेशनल एन. जी. ओ. है, पाई-पाई का हिसाब रखता है, क्या
मजाल कि चवन्नी भी इधर से इधर हो जाए, चाहे वह नेताओं की हो या फिर बाबुओं की.’
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अब तो चुनाव लड़वा दो...वेल क्वालिफाईड हो गया है.
जवाब देंहटाएंआखिर रास्ता मिल गया
जवाब देंहटाएंदोनों हाथ में चाँदी ...बेहतरीन लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसही धंधे का चुनाव आखिर हो ही गया.
जवाब देंहटाएंरामराम.