दूर
कहीं किसी देश में एक गांव था, दीन-दुनिया की बातों से अछूता. गांव, बाहर की दुनिया से एकदम कटा हुआ
था. ऊपर खुला आसमान और
नीचे हरी धरती ही गांव वालों की दुनिया थे. गांव में हर तरह के लोग थे. अलग-अलग धर्मों से मिलते-जुलते से उनके तरह-तरह
के विश्वास थे. अपनी ज़रूरत की सभी चीज़े वे ख़ुद ही उगा लेते थे. सब मिलजुल कर
रहते थे. गांव में कोई भी पढ़ा-लिखा इन्सान नहीं था. वे हर बात के लिए गांव के
एक सबसे बूढ़े आदमी से सलाह लेते और उसकी बात मानते. जब कभी कोई मुसाफिर उस
गांव से गुजरता, गांव वाले उसे घेर लेते कि वो कोई नई बात बताएगा, नई चीज़ें दिखाएगा.
एक
दिन गांव में, बाहर के कुछ लोग आकर ज़मीन की नपाई करने लगे तो गांव वालों ने कारण
पूछा. उन्होंने बताया कि सरकार ने फ़ैसला किया है कि उनके गांव में स्कूल
बनाया जाएगा. गांव वालों ने जाकर यह बात खुशी-खुशी उस सबसे बूढ़े आदमी को बताई. यह
बात सुन कर वह उदास हो गया और तब से चुप-चुप सा रहने लगा. एक दिन गांव वालों ने
पूछा कि बाबा तुम अब उदास क्यों रहते हो.
उसने
कहा –‘मेरे बच्चो, अब तुम लोग मिलजुल कर नहीं रह पाओगे.’ इतना कह कर वह उठा और खेतों
की ओर निकल गया.
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