गांव में दोनों के घर साथ-साथ थे. पर दुश्मनी पुश्तैनी
थी, किसी को याद नहीं था कि दुश्मनी किस बात पर और कब से चली आ रही थी. दोनों
घरों में आने वाली नई बहुएं भी बिना कहे ही शीतयुद्ध की पैठ समझ जातीं और समय के
साथ-साथ वे भी अपने-अपने दायरे बना लेती.
एक दिन, उन्हीं में से एक घर की बुजुर्ग महिला अपने बेटे
के साथ खेत की पगडंडी पर जा रही थी. सामने से, दूसरे घर का एक छोटा बच्चा अकेला
खेलता हुआ डगमग-डगमग चला आ रहा था कि यकायक ठोकर खा कर गिर पड़ा और रोने लगा.
महिला ने तेजी से डग भर कर बच्चे को उठा लिया और प्यार से चुप करा कर नीचे
उतार दिया. बच्चा अपने घर की ओर चल गया.
साथ चल रहे बेटे को अपनी मां का व्यवहार समझ नहीं आया और
कुछ हैरानी से देखता रहा. मां ने धीरे-धीरे कदम उठाते हुए कहा –‘बच्चा तो शेर का
भी निरीह ही होता है, बेटा. शिकार करना तो उसे सिखाया जाता है.’
बेटे ने कुछ नहीं कहा, बस धीरे-धीरे मां के साथ चलता रहा.
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